गाय को माता क्यों मानते हैं हम ?
हमारी चार माताएं हैं
जब मैं छोटा बच्चा था तभी से ये हमारे दिमाग में हमारे माता पिता व परिजनों ने भली भांति बैठा दिया गया था कि तुम्हारी चार माताएं हैं एक अपनी माता, दूसरी भारत माता, तीसरी धरती माता और चौथी गऊ माता।
अपनी माता के साथ ही साथ हमें प्रातः सोकर उठते ही धरती माता को प्रणाम करना सिखाया गया। फिर मां जब पहली रोटी सेंकती, तो कहती, जा इसे बाहर जाकर श्यामा गाय को दे आ। बहुत बाद में जाना कि इसे नैवेद्य कहते हैं।
हम बड़े कन्फ्यूज रहते थे कि मां से तो हमको लाड़, प्यार, दुलार देखभाल, खाना-पीना सब कुछ मिलता है। पर शेष अन्य माताएं क्या करती हैं? एक दिन हमने पिताजी से पूछ ही लिया। तब उन्होंने बताया राष्ट्र हमें गर्व-गौरव देता है।
धरती माता हमें भोजन देती हैं और गाय माता दूध। ये हमारे शरीर की अनिवार्यताएं हैं क्योंकि इनके सेवन के बिना हम बड़े हो ही नहीं सकते। ये बात तभी से हमारे जेहन में पत्थर की लकीर की तरह बैठ गई।
आइए, गौ माता पर कुछ विस्तार से बात करते हैं।
सबसे अधिक गायों वाला और विश्व में सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक देश है भारत
गाय का धार्मिक महत्व के साथ ही साथ आर्थिक महत्व भी है। गाय विश्व भर में पाई जाती है पर सर्वाधिक गायें हमारे देश में पाई जाती हैं। ताजा आंकड़ों के मुताबिक वर्तमान में भारत में 300 मिलियन से अधिक गाएं हैं और हम विश्व के सबसे बड़े दुग्ध उत्पादक देश हैं।
गाय पशु ही नहीं,भारतीय संस्कृति का अहम भाग है।
हिंदू धर्म में गाय को पवित्र माना जाता है और हमारे यहां यह सर्वाधिक पाला जाने वाला जानवर है। गाय को समृद्धि व सौभाग्य का प्रतीक मानकर पूजा जाता है। अनेक लोगों की आजीविका का आधार है और हिंदू समारोहों व अनुष्ठानों में गाय की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। हमें लगता है कि किसी भी धर्म में किसी भी जानवर को उतना सम्मान प्राप्त नहीं है, जितना हिंदू धर्म में गायों का है।
गाय को हिंदू धर्म में पूज्यनीय माना जाता है और मान्यता है कि गाय के अंदर 33 करोड़ देवी देवताओं का वास होता है। यही कारण है की दिवाली के दूसरे दिन गोवर्धन पूजा के अवसर पर मोरपंखों , कौड़ियों आदि से गायों का श्रृंगार करके उनकी पूजा की जाती है।
गौदान सबसे बड़ा दान माना जाता है। मान्यता है कि गौदान से मोक्ष की प्राप्ति की जा सकती है। हिंदू के तीज त्यौहार गाय के घी बिना पूरे नहीं होते। तीज त्यौहार के दिन घर को गाय के गोबर से लीपा जाता है और उस पर देवी देवताओं की प्रतिमाओं को बैठाया जाता है। अनेक लोग जरूरी काम करने से पहले गाय के दर्शन को शुभ मानते हैं।
कृष्ण का गौ प्रेम और शिव की सवारी नंदी
कृष्ण के गाय प्रेम को कौन नहीं जानता। इसी कारण उनका एक नाम गोपाल भी है। भगवान शिव की सवारी भी नंदी हैं।
प्राचीन भारत में गाय समृद्धि का प्रतीक और विनिमय का साधन
प्राचीन काल से ही गाय भारत की अर्थव्यवस्था की रीढ़ रही है चाहे पोषक दूध हो या बैल आधारित खेती। वैदिक काल में गायों की संख्या व्यक्ति की समृद्धि का मानक हुआ करता था। इसीलिए युद्ध के दौरान स्वर्ण आभूषणों के साथ ही गायों को भी लूट लिया जाता था। जिस राज्य या जिस व्यक्ति के पास जितनी अधिक गाएं होती थी, उसे उतना अधिक संपन्न माना जाता था। आरंभ में आदान प्रदान और विनिमय के रूप में गाय का उपयोग किया जाता था।
पुराणों के अनुसार गाय की उत्पति कैसे हुई ? कामधेनु,कपिला और क्षीर सागर
हमारे पुराणों में गाय की उत्पति पर अनेक ब्यौरे दिए गए हैं। सुरभि गाय की उत्पति समुद्र मंथन के समय चौदह रत्नों के साथ हुई। सुरभि से कपिला गाय उत्पन्न हुई जिसके दूध से क्षीर सागर बना।
भगवत पुराण पांच और गायों की उत्पति मानता है। कामधेनु या सुरभि ब्रह्मा जी ले गए और शेष पांच गाय ऋषियों को दे दी गईं ताकि वे लोग गायों से प्राप्त दिव्य पंच गव्य का उपयोग यज्ञ, अनुष्ठानों और मानवता के कल्याण के लिए कर सकें।
हमारे ग्रंथों में गाय का महत्त्व
महाभारत के अनुशासन पर्व में
गाय के सदगुण और उपयोगिता के बारे में वर्णन किया गया है कि गाय अपने दूध, दही और घी से जनता का पालन पोषण करती है। उसके पुत्र यानी बैल कृषि कार्य करते हैं। भार ढोते हैं और अपने श्रम से अनाज, बीज उत्पन्न करते हैं। उससे ही यज्ञ संपन्न होते हैं। गाय अमृत कलश है और सारा संसार उसके आगे नतमस्तक है ।
यजुर्वेद में कहा गया है
गोस्तू माता न विद्यते अर्थात गाय की उपमा किसी से भी नहीं की जा सकती है ।
ऋग्वेद में कहा गया है
गावो विश्वस्य मातर: अर्थात गाय विश्व की माता है ।
गवां कि तीर्थे वसती गंगा पुष्टिस्तथा तद्रजति प्रवृद्धा।
लक्ष्मीः करीषे प्रणतौ च धर्मस्तासां प्रणामं सततं च कुर्यात्।।
गाय का दूध एक परिपूर्ण पुष्टिदायक आहार है। आज घर में मनाये जाने वाले विशेष समारंभों में देह शुद्धि के लिए पंचगव्य (गोमय, गोमूत्र, गोरस, दही एवं घी इनका मिश्रण) सेवन करने, पुण्यप्राप्ति के लिए गोग्राम देने तथा गो-दान करने की प्रथा है।
इसीलिए सब प्राणियो में सर्वाधिक साधु प्राणी गाय को केवल एक चतुष्पदीय प्राणी न मानकर माता का स्थान दिया गया है। गाय के इस सर्वतामुखी गुणों के कारण ही गौ पालन एवम् गौ संवर्धन एक सरल, साध्य व उपयोगी प्रथा है।
क्या होता है पंचगव्य
पंचगव्य का अर्थ है गाय से प्राप्त पाँच पदार्थ- दूध, दही, घी, गोबर और गोमूत्र। इनकी उपयोगिता से प्रभावित होकर ही हमारे ऋषि-मुनियों ने गाय को रक्षक व माता का पद दिया है। प्राचीन समय से ही गोबर का प्रयोग हमारे किसान भाई भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ाने, खेती को रोग मुक्त बनाने तथा अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए करते रहें है।
ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़
आदिकाल से ही खेती की कल्पना पशुपालन के बिना नहीं की जा सकती है। महाभारत काल में कृष्ण और बलराम के चरित्र कृषि एवं पशुपालन के महत्व को दर्शाते हैं।
पशुपालन से हमें दूध, घी मक्खन, खोया, मट्ठा, दही, पनीर, मिठाई, क्रीम आदि मिलते हैं यह सब हिंदुओं के दैनिक आहार के मुख्य भाग हैं। गोबर, गौ मूत्र, उर्वरक, कीटनाशक, बायो गैस संयंत्र, उपले, आदि का उपयोग होता है। प्राकृतिक खेती इन पर ही आधारित है। कागज बनाने के लिए कच्चे माल के रूप में भी गोबर का उपयोग किया जाता है । ये माल ढुलाई, परिवहन के साधन के लिए प्रयोग किए जाते रहे हैं।
सेहत के लिए चमत्कारी है गाय का दूध
गाय का दूध हमारा शारीरिक विकास करता है और अनेक बीमारियों से बचाकर हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत करता है। बच्चों को विशेष रूप से गाय का दूध पिलाने की सलाह दी जाती है जिससे स्फूर्ति आती है, दिमाग तेज होता है। स्मरण शक्ति बढ़ती है, शरीर मजबूत व स्वस्थ बनता है,रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। इसीलिए डॉक्टर मरीजों को हमेशा गाय के दूध के सेवन की सलाह देते हैं। गाय का घी और गौमूत्र से अनेक आयुर्वेदिक औषधियों का निर्माण किया जाता है।
प्राकृतिक खेती का मूलाधार है देसी गाय
आजकल फिर एक बार तेजी से लोकप्रिय होती जा रही प्राकृतिक खेती का मूलाधार है देसी गाय का गोबर व गौमूत्र है। देसी गाय के गोबर में करोड़ों जीवाणु पाए जाते हैं जो भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ाते हैं। गौमूत्र भी खनिजों का भंडार है। कीटनाशकों के रूप में इसका प्रयोग प्रभावी पाया गया है।
एक देसी गाय के गोबर से 30 एकड़ भूमि में खेती की जा सकती है। गाय के मरने के बाद उसका चमड़ा, हड्डियां, सींग, खुर सहित सभी अंग किसी न किसी काम आते हैं। गाय के गोबर की महत्ता शीघ्र ही बहुत बढ़ने वाली है क्योंकि सरकार जोर शोर से प्राकृतिक खेती को प्रोत्साहित कर रही है।
गाय नियमित नकद आय दिलाने वाली ए टी एम है
गोवंश सदियों से हमारी आस्था और अर्थव्यवस्था का प्रतीक रहा है। गाय आज भी हमारी ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ है।यह किसान भाइयों को नियमित नकद आय दिलाने वाली ए टी एम है।
न फेंके सड़कों पर पॉलीथीन
विकास का चक्र आगे बढ़ जाने के कारण जीवन शैली बदल जाने से हममें में बहुत लोग गाय पालने की स्थिति में नहीं रह गए हैं। पर गाय के प्रति सम्मान का भाव रखें और कम से कम सड़कों पर पॉलीथीन न फेंके जिसके खाने से असमय गायों की मौत हो जा रही है।
निष्कर्ष
इन्हीं सब विशेषताओं के चलते हमारे पूर्वजों ने गाय की पूजा करने की पद्धति शुरू की होगी। इसीलिए हिन्दुओं में दिन की पहली रोटी नैवेद्य के रूप में गाय को देने की परंपरा पड़ी होगी। इसलिए हमारे ऋषियों ने गाय को गौ माता कहा है क्योंकि वह ऐसे गुणों से भरी हुई हैं जो हमारे स्वास्थ्य, मिट्टी और पर्यावरण सुधार करने में अतुलनीय है, साथ ही आज भी पशुपालन हमारी ग्रामीण अर्थव्यवस्था का आधार भी है।
FAQ
प्रश्न:1- गायों की संख्या और दुग्ध उत्पादन में भारत की क्या स्थिति है ?
उत्तर- भारत में सर्वाधिक गाय पाई जाती हैं और हम दुग्ध उत्पादन में पहले नंबर पर हैं।
प्रश्न 2:- हिंदू धर्म में गाय का क्या स्थान है ?
उत्तर- गाय को हिंदू धर्म में पूज्यनीय माना जाता है। किसी भी धर्म में किसी भी पशु को उतना सम्मान प्राप्त नहीं है जितना हिंदू धर्म गायों का है। त्योहार के दिन घर को गाय के गोबर से लीपा जाता है। हिंदू तीज त्योहार गाय के घी के बिना पूरे नहीं होते।
प्रश्न 3:- प्राचीन कालीन भारत की अर्थव्यवस्था में गाय का क्या महत्व था ?
उत्तर- प्राचीन काल से ही गाय अर्थव्यवस्था की नींव रही है, चाहे खेती हो या दूध। वैदिक काल में गायों की संख्या व्यक्ति की समृद्धि की मानक हुआ करती थी।तब इसे आदान प्रदान और विनिमय के साधन के रूप में उपयोग किया जाता था।
प्रश्न 4:- पौराणिक मान्यताओं के अनुसार गाय की उत्पति कैसे हुई ?
उत्तर- सर्वप्रथम सुरभि गाय की उत्पति समुद्र मंथन के समय चौदह रत्नों के साथ हुई।
प्रश्न 5:- पंचगव्य का क्या अर्थ है ?
उत्तर- पंचगव्य का अर्थ है , गाय से प्राप्त पांच पदार्थ दूध, दही, घी, गोबर व गौमूत्र ।
प्रश्न 6:- प्राकृतिक खेती का आधार क्या है ?
उत्तर- प्राकृतिक खेती का आधार देसी गाय का गोबर और गोमूत्र है। इससे खाद, दवा, कीटनाशक तैयार किए जाते हैं। एक देसी गाय से 30 एकड़ भूमि पर खेती की जा सकती है।