कुछ शब्द अपने बारे में (About Us)
About Us Sanjay Blogger
समस्याएं क्या हैं ?
- भारत सरकार और तमाम प्रदेश सरकारें हर साल प्रचार प्रसार हेतु अरबों रुपए व्यय कर कागज पर साहित्य प्रकाशित करती रही हैं। इसमें से अधिकांश साहित्य स्थाई प्रकृति का होता है। स्थाई प्रकृति का अर्थ है, जिस साहित्य में लंबे समय तक बदलाव की आवश्यकता न हो, उदाहरण के लिए गेहूं की खेती, गाय पालन कैसे करें, आम में लगने वाले प्रमुख रोग आदि।अब इस तरह के टॉपिक्स पर हर साल भारी मात्रा में कागज़ पर सामग्री का क्या औचित्य है? क्या महज खानापूर्ति या न्यस्त स्वार्थ हैं?
- अधिकांशतया सामग्री निम्न स्तरीय कागज पर घटिया प्रिटिंग करके छाप दी जाती है। कई बार इनका कंटेंट वर्षों पुराना, निम्न स्तरीय और अधिक काम का नहीं होता।
- हर साल इनके प्रकाशन का टेंडर करना पड़ता है, जिससे प्रशासन का काफी संसाधन, समय व ऊर्जा जाया होती है। अनेक बार बजट आने का इंतजार करते हुए सारा विभाग महीनों तक बैठा रहता है।
- इनका वितरण ठीक से नहीं हो पाता। सामग्री ग्राम पंचायत,ब्लॉक,तहसील, जिलों आदि तक ये अधिकांशतया अच्छी तरह और समय से नहीं पहुंच पाती। अगर कभी कभार पहुंच भी जाती हैं, तब गांवों तक पहुंचाने में बहुत ऊर्जा, समय और संसाधन खर्च हो जाते हैं।
- अगर ये किसी तरह कभी कभार ग्राम पंचायत, ब्लॉक आदि तक पहुंच भी जाएं, तब अधिकांशतया इनका इस्तेमाल नहीं हो पाता और ये स्टोर में पड़ी रह जाती हैं। कुछ समय बाद इन सामग्रियों को रद्दी में बेच दिया जाता है। कई बार इन महत्वपूर्ण सामग्रियों से मूंगफली का लिफाफा,नमक व चूरन की पुड़िया आदि बन जाती हैं।इस प्रकार जिस मूल उद्देश्य से इन सामग्रियों का निर्माण किया जाता है वो पूरा नहीं हो पाता।
- अनेक बार व्यक्तियों को ये सामग्री जबरन दे दी जाती हैं।अगर कोई व्यक्ति केवल गेहूं, धान का किसान है, तब उसे रेशम, मत्स्य आदि संबंधी सामग्रियों का क्या काम? वे व्यक्ति इनकी कीमत नहीं समझते,एक बार फिर ये रद्दी में चली जाती हैं और हमारे मूल्यवान संसाधन व्यर्थ हो जाते हैं।
- सरकारी कार्यालय लाखों की संख्या में हैं, पर अधिकांश कार्यालयों में जब आम जन जाते हैं, तब कोई प्रासंगिक सामग्री उन्हें नहीं मिलती और न ही कोई मार्गदर्शन मिल पाता है।
- जो सामग्री जाती भी है, वह स्तरीय नहीं होती। सामान्यतया वो दशकों पहले यानी भारत में इंटरनेट के लोकप्रिय होने से पहले के समय की तैयार की गई होती हैं जबकि इंटरनेट के आगमन से साहित्य व चित्रों में गुणात्मक परिवर्तन हो गया है।
समय बदल गया है।
इंटरनेट के बहुत सस्ता हो जाने से स्मार्ट फोन घर घर तक पहुंच गए हैं।गांव के लोग भी इनका जमकर इस्तेमाल कर रहे हैं।देश विदेश के पल पल के समाचार, मनोरंजन, खेल कूद, ज्ञान विज्ञान आदि सर्वसुलभ हो गया है। हाल ही में हमारे चंद्रयान 3 की विजय यात्रा को करोड़ों लोगों ने लाइव देखा।अब इंटरनेट के माध्यम से बहुत ही सस्ते, कम समय और कम ऊर्जा लगाकर आम जनता तक पहुंचना बेहद आसान हो गया है।
अवसर कहां है ?
इंटरनेट का प्रयोग गांवों में दिन दूना रात चौगुना बढ़ता ही जा रहा है। लेकिन अधिकांश लोग इसका उपयोग केवल मनोरंजन के लिए कर रहे हैं। हम इंटरनेट को सूचित,शिक्षित व प्रेरित करने का सशक्त साधन भी सहज बना सकते हैं। ये इतना शक्तिशाली माध्यम है कि पल भर में ज्ञान और एक्शन को गांवों में रहने वाले करोड़ों देशवासियों तक बड़ी आसानी से प्रभावी तरीके से पहुंचा सकता है।
कठिनाई क्या है ?
आम जनता के स्वरोजगार, कृषि, पशुपालन, बागवानी आदि से संबंधित स्तरीय सामग्री विशेषतया हिंदी में बहुत कम है जबकि इस सर्वाधिक आबादी वाले देश में अधिकांश आबादी गांवों में बसती है और अच्छी तरह हिंदी समझती है। व्यापार की भाषा में बोलूं तो डिमांड ज्यादा और सप्लाई कम है। अफसोस है कि सरकारें आज भी अभी पुराने तौर तरीकों में ही उलझी व सिमटी हुई हैं जबकि डिजिटल क्रांति के इस दौर में समय का चक्र बहुत आगे बढ़ गया है।
हम क्या हैं ?
Sanjay Blogger गत 25 वर्षों से किसान, बागवान, पशुपालक आदि को सशक्त बनाने के लिए पढ़ते लिखते रहे हैं। गरीब को स्वरोजगार हेतु कैसे प्रेरित किया जाए ताकि उनका उन्नयन हो सके। इस मूल उद्देश्य को ध्यान में रखकर हमने अनेक विषयों यथा कृषि, उद्यान, पशुपालन, खाद्य प्रसंस्करण, मत्स्य, रेशम, रसायनमुक्त व प्रदूषणमुक्त उत्पाद,सिंचाई, जल प्रबंधन आदि विविध विषयों पर साहित्य तैयार कर एक लिटरेचर बैंक (Literature Bank) बना रखा है। सरकार के अनेक विभाग समय समय हमारी सामग्री प्रकाशित करते रहे हैं।
कहां पर है दृष्टि ?
चूंकि कृषि कार्य सीजनल रहता है, इसलिए हमारे गांवों में लोगों के पर्याप्त खाली समय रहता है।दूसरे शब्दों में कहें तो प्रच्छन्न बेरोजगारी (Disguised Unemployment) बहुत अधिक है।इन लोगों तक अगर इस ब्लॉग के माध्यम से क्रियात्मक ज्ञान पहुंच जाए, तब बेकार जा रहे इनके समय व ऊर्जा को उत्पादक कार्यों में लगाया जा सकता जा सकता है। इससे देश के विकास में पैराडाइम शिफ्ट हो सकता है।
हम करेंगे क्या ?
संजय ब्लॉगर को अभी हमने चार कैटेगरी में बांटा है। हम समग्र ग्राम विकास पर फोकस करेंगे। गांव में रहकर किसानों को और दक्ष कैसे बनाया जाए ताकि उनका आर्थिक उन्नयन हो जाए। बिना नगरों के किसानों का उत्थान नहीं हो सकता क्योंकि बाजार शहरों में है।जब तक शहर के लोग गांव के उत्पादों को नहीं खरीदेंगे,तब तक गांव के लोगों की आमदनी कैसे बढ़ेगी। हम 100% Pure, bio, organic, natural, vegan, chemical free and pollution free विचारों व उत्पादों पर बहुत जोर दे रहे हैं।हमारा मोटो है “Give Back To Mother Earth” है और हमारी टैग लाइन है, “Kick the Chemicals“. वेबसाइट की एक कैटेगरी केमिकल फ्री व पॉल्यूशन फ्री प्रोडक्ट्स बनाई गई है। राष्ट्र निर्माण का कार्य केवल चंद नेताओं, अधिकारियों, फौज आदि का ही नहीं है। बल्कि इस राष्ट्र के एक एक व्यक्ति का परम पुनीत कर्तव्य है, तभी यह राष्ट्र सशक्त बनेगा। इसीलिए हमने एक कैटेगरी राष्ट्र निर्माण की बनाई है। शेष बचे हुए अन्य मुद्दों और अपने अनुभवों को आपसे शेयर करने के लिए विविध कैटेगरी बनाई है।हमने अपने अनुभव से जाना है कि लोगों की असफलता के पीछे असल कारण पूंजी, संसाधन या योग्यता की कमी न होकर आत्मविश्वास, मोटिवेशन व धैर्य की कमी होती है। विविध कैटेगरी में ऐसे आलेख डालेंगे, जो इन्हें बढ़ाए। राष्ट्र के सशक्त बनाने वाले नौजवानों के काम के विषयों पर संजय ब्लॉगर पर पिलर पोस्ट भी डालेगा ताकि प्रासंगिक व महत्वपूर्ण विषयों पर आपको सांगोपांग ज्ञान हो सके।
यूट्यूब चैनल्स और वेब स्टोरीज का निर्माण
हमारा सारा फोकस नेशन बिल्डिंग पर है। राष्ट्र की शक्तियों और कमजोरियों पर नज़र रखकर उसकी विवेचना के लिए दो यूट्यूब चैनल्स बॉन प्रोडक्ट्स और नेशन बिल्डिंग प्रॉडक्ट्स का संचालन कर रहे हैं जिसमें हम 170 से भी अधिक वीडियो डाल चुके हैं।शीघ्र ही हम वेब स्टोरीज भी डाल रहे हैं।
टिप्पणी
Sanjay Blogger का उद्देश्य मात्र धनार्जन कतई नहीं है। हमारे अनेक ऑफलाइन उद्यम सफलतापूर्वक चल रहे हैं। हम वानप्रस्थ आश्रम में प्रवेश कर चुके हैं और अब अपने व परिवार से इतर भी कुछ करना चाहते हैं।आम जन,गांव,समाज और राष्ट्र को हर तरह से सशक्त व सक्षम बनाना ही इस ब्लॉग संजय ब्लॉगर का मूलभूत उद्देश्य है। मैं तावीज क्या अंगूठी तक नहीं पहनता पर साबरमती आश्रम की दीवार पर अंकित गांधी जी के ये शब्द मेरे मानस पर सदा के लिए अंकित हो गए। गांधी जी कहते हैं – मैं तुम्हें एक तावीज देता हूं। जब भी दुविधा में हो या जब अपना स्वार्थ तुम पर हावी हो जाए, तो इसका प्रयोग करो। उस सबसे गरीब और दुर्बल व्यक्ति का चेहरा याद करो जिसे तुमने कभी देखा हो, और अपने आप से पूछो-जो कदम मैं उठाने जा रहा हूं, वह क्या उस गरीब के कोई काम आयेगा, क्या उसे इस कदम से कोई लाभ होगा? क्या इससे उसे अपने जीवन और अपनी नियति पर कोई काबू फिर मिलेगा ? दूसरे शब्दों में,क्या यह कदम लाखों भूखों और आध्यात्मिक दरिद्रों को स्वराज देगा? ये ब्लॉग पता नहीं, सफल हो या न हो, पर इसे करके मुझे राहत अवश्य मिल रही है। शुरू से गांव, गरीब,मजदूर, किसान, समाज कल्याण के लिए कुछ बिल्कुल ईमानदारी से, स्वार्थ से परे होकर कुछ करना चाहता था। थोड़ी देर जरूर हुई, पर मेरा यह लंबे समय से संजोया हुआ सपना अब पूरा होने जा रहा है।