क्यों है E D का खौफ ?
अब सारे वी वी आइ पी जांच के दायरे में
क्या है E D का ड्राइविंग फोर्स एफ.ए.टी.एफ.
पहले क्यों छूट जाते थे भ्रष्टाचारी कानून की गिरफ्त से
E D stand for Directorate of Enforcement
भ्रष्टाचारियों में हाहाकार
एक समय था देश में सी बी आई का खौफ रहता था पर अब E D का खौफ भ्रष्टाचारियों में हाहाकार मचा हुआ है। सारे एक साथ मिलकर ई डी का जमकर विरोध कर रहे हैं। आइए देखते हैं भ्रष्टों की निकल रही कराह व चीत्कार का कारण क्या है?
क्या है स्वीट डील?
एक घटना याद आ गई जब लालू को चारा घोटाले में सी बी आई की विवेचना से पांच साल और पच्चीस लाख जुर्माने की सजा हुई थी तब केजरीवाल ने ट्वीट करके इसे स्वीट डील कहकर व्यंग्य किया था। ऐसा इसलिए किया था लालू ने स्मार्टली थोड़ी सजा पाकर हजारों करोड़ बचा लिए थे ।
E D के आने पर स्थिति बदली
अब ई डी के आने पर स्थिति बदल गई है। आइये देखते हैं क्या अंतर है?
* अब जिनके पास लूट का धन मिलेगा, उस धन का मूल स्रोत व औचित्य बताने व प्रमाणित करने की जिम्मेदारी उनकी स्वयं की होगी। अन्य एजेंसी जैसे सी बी आई आदि को धन का स्रोत स्वयं ढूढने पड़ते हैं । सरकारी समय व संसाधनों का भारी अपव्यय होता था जबकि आरोपी आराम से रहते थे ।
* अब ई डी के समक्ष अपनी संपति के प्रमाण स्वयं देने पड़ते हैं। अगर नहीं बतला पाए, तब उस धन को जब्त करने का अधिकार ई डी को होगा।
* भारी धन संपति वाले व्यक्ति के रिश्तेदारों व जुड़े सभी लोगों की भी गहन जांच की जायेगी। मनीट्रेल को जांचा परखा जायेगा।
* जब तक व्यक्ति अपनी भारी संपति का औचित्य स्वयं सिद्ध नहीं कर देता, तब तक उसे जमानत नहीं मिलती। इसी कारण सत्येंद्र जैन, अनिल देशमुख, नवाब मालिक, मनीष सिसोदिया आदि लंबे समय तक अंदर रहे।
बी पी एल वाले हो गए अरबपति
महज़ कुछ वर्षों पहले बी पी एल श्रेणी में रहने वाले राजनीति में आकर शीघ्र ही सैकड़ों करोड़ के मालिक कैसे बन गए। दशकों से इस देश के अनेक राजनीतिज्ञों ने अपने व अपने परिवार के निजी इस्तेमाल के लिए देश के संसाधनों को जमकर लूटा और देश का कानून लाचार होकर देखता रहा। इन राजनीतिज्ञों ने कोई वैज्ञानिक खोज नहीं की या व्यापार नहीं किया। इनके द्वारा देश लूटकर जमा की गई अकूत सामग्री का कोई कानूनी स्रोत नहीं था।
अंधी लूट का असर राजनीति व समाज पर
इनके द्वारा मचाई गई इस अंधी लूट का असर राजनीति और समाज पर पड़ा। आम आदमी के मन में राज नेताओं का सम्मान गिर गया। इन्होंने राजनीति को महंगा बना दिया। समाज में भी भ्रष्टाचार की स्वीकार्यता बढ़ गई। अब सामान्य आदमी भी यह कहने लगा कि जब नेता इतनी बड़ी लूट कर रहे हैं तब हम थोड़ा सा ही धन गलत ढंग से ले रहे हैं। पूरे देश का माहौल चन्द लुटेरों ने खराब कर रखा था।
देश प्रेमियों को पीड़ा
देश प्रेमियों को इससे बड़ी पीड़ा हो रही थी। 75 सालों से यह लूट का कल्चर मजबूत होता चला गया। जोड़ तोड़ कर बनी सरकारों से इन बेईमान नेताओं को और बढ़ावा मिला।
भ्रष्टाचारियों द्वारा मिलकर E D का विरोध
आज जब इस देश की संस्थाएं अपने निजी लाभ, लोभ व लालच के लिए देश का व आम जनता का पैसा लूटने वालों पर कार्यवाही कर रहे हैं तो वे हंगामा काट रहे हैं। आज इस तरह के सारे तत्व एकजुट हो रहे हैं और सरकार, ई डी व सीबीआई पर प्रहार कर रहे हैं क्योंकि उनके पास इस बात का कोई जवाब है ही नहीं कि यह अकूत धन संपत्ति उनके पास आई कहां से ?
सर्वेंट क्वार्टर से पॉश फ्रेंड्स कॉलोनी
40 साल पहले सर्वेंट क्वार्टर में रहने वाले लालू के पास 600 करोड़ की संपत्ति और पॉश फ्रेंड्स कॉलोनी में बंगला कहां से आ गया? लालू अकेले नहीं है हर प्रदेश में अनेक उदाहरण मौजूद है ।
क्या इनकी वैद्य कमाई से यह संभव हो सकता था?
क्या है E D का बैकग्राउंड ?
E D या एनफोर्समेंट डायरेक्टरेट 2002 में बने एक्ट प्रिवेंशन ऑफ मनी लांड्रिंग एक्ट के तहत काम करता है। अब आइए जान ले E D का बैकग्राउंड। आखिर 2002 में इस कानून को क्यों लाना पड़ा ?
धन की बंदरबांट को रोकने के लिए
1989 में जी 7 की मीटिंग में गहन चिंता व्यक्त की गई कि विकसित देश विकासशील देश को विकास करने के लिए जो फंड देते हैं, उसका भारी दुरुपयोग हो रहा है और देशों का विकास नहीं हो पा रहा है। पता यह चला कि इन देशों के decision-making में बैठे लोग विकसित देशों से मिलने वाले धन की बंदरबांट कर रहे हैं । ऐसे लोगों में मंत्री, अधिकारी, पब्लिक सेक्टर के अधिकारी, मिलिट्री के लोग, एनजीओ और यहां तक कि जज भी शामिल हैं।
क्या E D का ड्राइविंग फोर्स एफ ए टी एफ ?
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक इंटर गवर्नमेंटल संस्था है जिसका नाम है एफ.ए. टी. एफ. यानी फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स जिसका हेड क्वार्टर पेरिस में है। इन विकासशील देशों से कहा गया कि यह संस्था एक गाइडलाइन तैयार करेगी। अगर आपको विकसित देशों से फंड चाहिए तो आपको इन्हें मानना ही पड़ेगा और अपने लचर कानूनों को छोड़कर इस संस्था द्वारा बनाई गई गाइडलाइंस को लागू करना ही होगा।
क्या है प्रिवेंशन ऑफ मनी लांड्रिंग एक्ट ?
इसी कारण प्रिवेंशन ऑफ मनीलॉन्ड्रिंग एक्ट को लागू करके एनफोर्समेंट डायरेक्टरेट की स्थापना की गई। एफ ए टी एफ इस पर कड़ी नजर रखती है कि मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट ठीक से बनाया गया है या नहीं। उस देश की E D ठोस रूप से काम कर रही है या नहीं। क्या पकड़े जा रहे लोगों को सजा मिल रही है या केवल खानापूर्ति हो रही है।
बैंक खातों पर तीखी नज़र
डिसीजन मेकर्स से जुड़े देसी विदेशी बैंक खातों पर भी नजर रखी जाएगी सिर्फ उनके ही नहीं, परिवार, रिश्तेदार, स्टाफ, बिजनेस पार्टनर, CA आदि जिन पर भी शक है उन पर भारत सरकार नजर रखेगी ।
मछलियां को पकड़ कर मगरमच्छ छोड़ रहे थे
भारत सरकार ने जो प्रिवेंशन ऑफ मनी लांड्रिंग एक्ट बनाया पर उसमें यह डिफाइन नहीं किया गया था कि किन पर नजर रखनी है। जान बूझकर यह गैप छोड़ दिया गया था इसलिए छोटी-छोटी मछलियां पकड़ी जा रही थी और मगरमच्छ छूटते जा रहे थे।
एफ ए टी एफ द्वारा रिव्यू
भारत सरकार पर FATF संस्था का दबाव है कि अपने ED को पर्याप्त मजबूत करें क्योंकि FATF भारत का रिव्यु करने वाला है। सरकार ने इसीलिए एक नोटिफिकेशन निकालकर ED की शक्तियों को और दायरे को बढ़ा दिया है।
अब दो नंबर के धन पर तगड़ा सर्विलांस
अब सारे वीवीआइपी जांच के दायरे में आ गए हैं और इनके खातों पर कड़ी नजर रखी जाएगी। किसी भी बैंक अकाउंट से बड़ा ट्रांजैक्शन दिखने पर बैंक तुरंत रिपोर्ट ई डी और आर बी आई को भेजेगा। अगर यह पैसा विदेश गया तो वहां के बैंकों को भी यह रिपोर्ट देनी होगी। अब आप दो नंबर के धन को छुपा नहीं सकते क्योंकि यह आतंकवाद, ड्रग, एक्सटॉर्शन, ह्यूमन ट्रैफिकिंग, दलाली, भ्रष्टाचार आदि किसी भी अवैध गतिविधि का पैसा हो सकता है। यह सारी चीजें समाज के लिए घातक है । जो लोग कुर्सी पर आएंगे उन पर तगड़ा सर्विलेंस रखा जाएगा।
चिदंबरम और सुप्रिया सुले
हर बड़े ट्रांजैक्शन को जस्टिफाई करना होगा। अब कोई चिदंबरम या सुप्रिया सुले की तरह गमले में करोड़ों रुपए सब्जियां नहीं उगा पायेगा। ऐसे लोगों से उनकी संपत्ति का प्रूफ मांगा जाएगा, प्रूफ दे दीजिए कि कहां से आया है । यह धन अगर वैध है तो आप तुरंत छूट जाएंगे, अन्यथा जेल जायेंगे।
विकासशील देशों की बड़ी समस्या
हिंदुस्तान ही नहीं यह दुनिया के तमाम देशों में विशेष तौर से विकासशील देशों की एक बड़ी समस्या हैं। समस्या है यहां के राजनीतिक एवं अन्य डिसीजन मेकर्स दोनों हाथों से उस देश के संसाधनों को लूट रहे हैं।
पाक का उदाहरण
पड़ोस का ही उदाहरण पाकिस्तान है हाफिज सईद भी तो एक एनजीओ ही चला रहा है। उस एनजीओ के माध्यम से आतंकवादी गतिविधियां कर रहा है । पाकिस्तान के नेता, मिलिट्री अधिकारी, एन जी ओ, जजेस आदि सभी लोग भारी भ्रष्टाचार में लिप्त हैं।
एफ ए टी एफ ने डाला पाक को ग्रे लिस्ट में
इसी कारण एफ ए टी एफ ने पाक को ग्रे लिस्ट में डाल दिया है और हर छह महीने बाद वह पाकिस्तान को चेक कर रहा है कि पाकिस्तान सुधर रहा है या नहीं । इसी कारण पाकिस्तान को आई एम एफ और तमाम फंड एजेंसियों से पैसा मिलने में भारी दिक्कत हो रही है । एफ ए टी एफ पाकिस्तान को ब्लैक लिस्ट में भी डाल सकता है तब उसके साथ कोई भी अंतरराष्ट्रीय संस्था, सरकार, प्राइवेट कंपनी संबंध नहीं रखेगी और देश का विकास ठप पड़ जाएगा।
पहले चोर आराम से और सरकारी एजेंसियां परेशान
पहले करप्शन और मनी लॉन्ड्रिंग में मिले धन के बारे में सरकारी एजेंसिंयों को ही प्रूफ करना पड़ता था और अपने समय और संसाधनों का अपव्यय करके वे प्रमाण जुटाती थीं और चोर आराम से घर में बैठे रहते थे। अब उस व्यक्ति को ही प्रमाण देना पड़ता है जिसके पास भारी संपत्ति मिली है। अगर उसने संपत्ति वैध रूप से खरीदी है तो कागज दिखलाता है और छूट जाता है।
भ्रष्टाचारी द्वारा लूट आसान
पहले सीबीआई जांच करती थी और अनेक इस तरह के भ्रष्टाचारी लोग 2-4 साल जेल काट कर 200- 400 करोड़ के मालिक बन जाते थे और सरकारी एजेंसी कुछ नहीं कर पाती थी। पहले सरकारी मुकदमा अनेक वर्षों तक चलते थे। अनेक विवेचना अधिकारी बदल जाते थे, गवाहों को तोड़ दिया जाता था, न्याय व्यवस्था को प्रभावित कर लेते थे। इस कारण केस कमजोर हो जाते थे।
एफ ए टी एफ की कार्यशैली
एफ ए टी एफ, एफ आई आर या अन्य तकनीकी डिटेल्स पर नहीं जाती है। वह सीधे पूछती है कि आप अपने पैसे के स्रोत जस्टिफाई करिए, अगर आप जस्टिफाई कर ले गए तो छूट जाएंगे। वह एसेट को इन्वेस्टिगेट करती है और मंत्री और आसपास के लोगों की सम्पत्ति बेतहाशा बढ़ी, तो प्रमाण मांगती है। मनीष सिसोदिया का पूरा परिवार स्टाफ, मित्र सभी में मनी ट्रेल है । खास समय में इन सभी की संपत्ति बहुत बढ़ गई है।
एफ ए टी एफ गाइडलाइन मानना सरकार की मजबूरी
एफ ए टी एफ के कानून बहुत सख्त हैं अवैध संपत्ति को जब्त करने को लेकर। एफ ए टी एफ गाइडलाइंस को सरकार द्वारा मानना सरकार की भी मजबूरी है। अगर वह इसे नहीं मानती है तो बाहर से मिलने वाली तमाम संसाधन और सुविधाएं देश को नहीं मिलेगी।
अब धारा बदल रही है
ऐसा लगता है कि अब धारा बदलेगी। आने वाले समय में लोग वी वी आई पी से दूर रहकर काम करेंगे, अभी अधिकांश लोग चिपके रहते हैं। हम क्यों फंसे मंत्री के चक्कर में। ई डी की नजर रहेगी मंत्री जी या डिसीजंस मेकर्स के नज़दीकियों पर। जब सत्ता में रहेंगे तो लोग नजदीक जाने से हिचकेंगे। हां, सत्ता से दूर हो जाएंगे तब मुलाकात करेंगे।
E D का सिंपल फंडा
एफ ए टी एफ और ई डी का फंडा बहुत सिंपल है । धन संपति का वैद्य सोर्स बताइए, नहीं तो वह जब्त की जाएगी और अपनी संपति की वैधता के बारे में आपको स्वयं प्रमाण देने पड़ेंगे। तभी आप जमानत पर छूट पाएंगे।
पहले पतली गली से निकलने के लिए गैप
दुनिया बहुत सिंपल है, हम लोग जान बूझकर कानूनों को कॉम्प्लिकेटेड बनाते थे, उसमें गैप रखते थे ताकि जब फंसे तो पतली गली से निकल लें । दुर्भाग्य से 75 सालों में यही सब होता रहा है। लूट की छूट की पुरानी आदतों को बदलने में समय लगेगा।
न खाऊंगा न खाने दूंगा
अभी उन्हें लग रहा है कि हम हल्ला गुल्ला काटकर मैनेज कर लेंगे। जोड़-तोड़ की सरकारों के कारण अनेक नेता बचते रहे हैं । अब एक पार्टी की सरकार है और प्रधानमंत्री ने पहले ही स्पष्ट कर दिया है न खाऊंगा न खाने दूंगा।
अब मुद्दे अंतराष्ट्रीय
अब अनेक मुद्दे राष्ट्रीय न होकर अंतरराष्ट्रीय हो गए हैं जैसे क्राइम, करप्शन, पर्यावरण आदि। इंटरनेट, डिजिटलीकरण, सोशल मीडिया आदि के कारण दुनिया बदल गई है अब हमें भी बदलना होगा।
अब सोशल मीडिया के द्वारा जनता की कड़ी नजर
अब जनता सोशल मीडिया के जरिए डिसीजन मेकर्स पर आंख लगाए बैठी है। ई डी ने भी कमर कस ली है।इसीलिए लुटेरों के अच्छे दिन अब शीघ्र समाप्त होने वाले हैं।