अनेक बार हिंदुओं की गाय के प्रति श्रद्धा का मखौल उड़ाया जाता है। नई कॉन्वेंट वाली नेट वाली पीढ़ी भी क्या करे, उनको गाय की महत्ता का ज्ञान ही नहीं है।
माकूल जवाब
गाय का बखान खूब है किंतु वैज्ञानिक आधारों पर बात कम की गई है। पेश है वैज्ञानिक विवेचना जिससे आप श्रद्धा का मखौल उड़ाने वालों का माकूल जवाब दे सकें।
अमृत समान दूध
सेहत के लिए चमत्कारी है गाय का दूध। शरीर को सशक्त व स्वस्थ बनाता है, स्फूर्ति व स्मरण शक्ति बढ़ाता है, दिमाग तेज होता है, बच्चों के लिए अमृत समान है।
दैनिक आहार के भाग
पशुपालन से हमें दूध, दही, घी, मक्खन, पनीर, खोया, मिठाई, मट्ठा, क्रीम आदि मिलते हैं जो हमारे दैनिक आहार की मुख्य भाग हैं।
अन्य प्राप्तियां
पशुपालन से हमें गोबर, गौ मूत्र, उर्वरक, कीटनाशक, बायो गैस, उपले आदि मिलते हैं। ये माल ढुलाई, परिवहन के साधन के रूप में प्रयोग किए जाते रहे हैं।
खेती पशुओं पर आधारित
कुछ वर्षों को छोड़ दिया जाए, तब आदि काल से ही खेती की कल्पना पशुपालन के बिना की ही नहीं जा सकती। सिंधु सभ्यता से खेती व बैल के प्रमाण मिलने लगते हैं।
देशीव विदेशी गाय मेंअंतर
अनेक अंतर पाये जाते हैं पर आसानी से दिखने वाले दो अंतर हैं भारतीय नस्ल की गायों में हेम्प (पीठ पर उभार) व गल कंबल (गले में सिकुड़न) का होना।
A2 प्रोटीन
भारतीय गायों के हेंप में सूर्य केतु नाड़ी होती है जो सूर्य की किरणों की उपस्थिति में A2 प्रोटीन बनाती है जो उत्तम और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाला होता है।
A2 दूध
विदेशी व भारतीय नस्ल की गायों के दूध को क्रमशः A1 व A2 मिल्क नाम दिया गया। वैज्ञानिक परीक्षणों में A2 दूध अधिक गुणकारी माना जाता है।
गोबर व गौ मूत्र
गाय के गोबर व मूत्र पोषक तत्त्वों के भंडार हैं जो खेती को मिलते रहे हैं। गाय के मूत्र में भैंस के मूत्र की तुलना में लगभग दोगुनी मात्रा में नाइट्रोजन मिलती है।
जीवाणु की मात्रा
वैज्ञानिक रूप से सिद्ध है कि भारतीय गाय के 1 ग्राम गोबर में 300-500 करोड़ व विदेशी गाय में 70-80 लाख जीवाणु पाए जाते हैं जो उर्वरा शक्ति को बढ़ाते रहे हैं।
छुट्टा पशु भी काम के
दूध देना छोड़ चुकी गौ वंश में जीवाणुओं की मात्रा अधिक होती है क्योंकि वे ताकत दूध में न लगाकर जीवाणु बढ़ाने में लगाते हैं।
प्राकृतिक खेती का मूलाधार
आधुनिक वैज्ञानिक प्राकृतिक खेती का मूलाधार भारतीय गाय का गोबर व गौ मूत्र है। एक भारतीय गाय से 30 एकड़ भूमि में खेती की जा रही है। खाद, कीटनाशक बन रहे हैं।
पंचगव्य का अर्थ
पंचगव्य यानी गाय से प्राप्त पांच पदार्थ-दूध, दही, घी, गोबर व गौ मूत्र। वैदिक काल से ही ऋषि पंचगव्य का उपयोग यज्ञ, अनुष्ठानों और मानव कल्याण में करते रहे हैं।
अर्थ व्यवस्था की रीढ़
प्राचीन काल से ही गाय हमारी अर्थ व्यवस्था की रीढ़ रही है। वैदिक काल में गायों की संख्या राज्य या व्यक्ति की समृद्धि का मानक हुआ करती थी।
विनिमय का साधन
आरंभ में गाय को आदान प्रदान और विनिमय के साधन के रूप में उपयोग किया जाता था। इसीलिए युद्ध के दौरान स्वर्ण आभूषणों के साथ गायों को भी लूट लिया जाता था।
नकद आय प्राप्ति
गो वंश सदियों से हमारी आस्था का प्रतीक व अर्थव्यवस्था का आधार रहा है। यह पशुपालकों को नियमित नकद आय दिलाने वाला ए टी एम है।
गुणों के कारण माता
गुणों से भरे होने के कारण ही हमारे ऋषियों ने गाय को माता कहा था क्योंकि ये गुण स्वास्थ्य, खेती, मिट्टी व पर्यावरण सुधार करने में अतुलनीय थे।
गाय पूज्य क्यों ?
स्वास्थ्य व अर्थव्यवस्था के लिए आधारभूत होने के कारण पूज्य मानकर गायों का शास्त्रों में बखान किया गया, गौ हत्या को पाप माना और नैवेद्य की परंपरा पड़ी होगी।
पूज्य व पवित्र
हिंदू धर्म को पवित्र व पूज्यनीय माना जाता है। किसी भी धर्म में किसी भी पशु को उतना सम्मान प्राप्त नहीं है, जितना हिंदू धर्म में गाय का है।
संस्कृति का भाग
हिंदुओं के तीज त्यौहार गाय के घी के बिना पूरे नहीं होते। त्यौहार के दिन घर लीपकर देवी देवताओं की प्रतिमा को बैठाया जाता है। गाय के दर्शन को शुभ माना जाता है।
देव प्रिय
कृष्ण को गाय प्रेम के कारण ही गोपाल कहा जाता है। दिवाली के दूसरे दिन गोवर्धन पूजा के दिन गाय की पूजा की जाती है। भगवान शिव की सवारी भी नंदी है।
सबसे बड़े दुग्ध उत्पादक
विश्व में सर्वाधिक लगभग 300 मिलियन से अधिक गाय भारत में हैं और हम विश्व के सबसे बड़े दुग्ध उत्पादक देश हैं।