लंपी नामक बीमारी अनेक प्रदेशों में तेजी से फैल रही है। गाय और भैंसों पर गंभीर संकट है। दुधारू पशु मर रहे हैं। संक्रमित पशुओं के दूध घटने की आशंका है ।
खतरा आम लोगों पर
पशुपालन ग्रामीण अर्थव्यवस्था का आधार है। दुधारू पशुओं का पालन गांवों में रहने वाला गरीब आदमी ही करता है। गरीबों की आजीविका पर लंपी का खतरा मंडरा रहा है।
लाइलाज बीमारी
लंपी स्किन डिजीज पर ठीक से ध्यान देना जरूरी है क्योंकि इसका कोई इलाज नहीं है। सावधानी, रोकथाम, जन जागरूकता एवं टीकाकरण से इससे बचा जा सकता है।
लंपी भारत कैसे आई ?
एल एस डी अफ्रीका में परंपरागत रूप से पाई जाती है। यह पहली बार 2019 में भारत में रिपोर्ट की गई। जल्द ही यह अनेक प्रदेशों में फैल गई और अब यह स्थानिक बन गई है।
डब्लू एच ओ द्वारा अधिसूचित
सीमाओं के परे विस्तार इसलिए ट्रांस बाउंड्री बीमारी है, विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसे अधिसूचित बीमारी घोषित किया है। लंपी रोग अनेक देशों में फैल गया है।
क्या है लंपी?
यह गाय व भैंसों में तेजी से फैलने वाली घातक, संक्रामक व लाइलाज बीमारी है। यह गांठदार त्वचा रोग वायरस या LSDV से फैलती है जो कैप्रीपॉक्स परिवार का वायरस है।
कैसे फैलता है ?
लंपी बीमारी मक्खी, मच्छर, किलनी, जूं, ततैया जैसे खून पीने वाले कीड़ों से फैलती है। संक्रमित पशुओं के सीधे संपर्क, लार, पशु आहार, पानी आदि से भी फैल सकती है।
मुख्य लक्षण
पशु संक्रमित को तेज बुखार के साथ लिम्फ़ ग्लैंड सूज जाती है।फिर त्वचा पर बड़े, कठोर, उभरे हुए व सख्त 5 सेंटीमीटर व्यास तक के फफोले या nodules पड़ जाते हैं।
रोग के अन्य लक्षण
तेज बुखार, आंख, नाक से पानी, गांठे, नैक्रोटिक घाव, पैर सूजना, लंगड़ापन, जठरांत्र का होना, कमजोरी, बांझपन, गर्भपात, निमोनिया, दूध कम हो जाना, सांस लेने में कठिनाई होना।
रोकने के क्या उपाय हैं ?
एल एस डी का कोई इलाज नहीं है, पर इसे रोकने के चार उपाय हैं : 1. Quarantine यानी आवागमन पर प्रतिबंध 2. टीकाकरण 3. सुनियोजित प्रबंधन 4. वध अभियान।
क्या करें ?
निकट के पशु चिकित्सालय को सूचित करें। संक्रमित पशुओं को अलग करें और उनका आवागमन प्रतिबंधित करेंकीटनाशक डालें। फिनाइल/ सोडियम हाइपो क्लोराइट का छिड़काव करें।
क्या करें ?
संक्रमित पशुओं के देखभाल करने वाले को अन्य पशुओं से दूर रखें।पशुओं को स्वच्छ पानी दें। संक्रमित पशुओं का दूध उबाल कर पीएं। मृत पशुओं को वैज्ञानिक विधि से दफनाएं।
क्या न करें ?
प्रकोप के समय पशुओं को सार्वजनिक चारागाहों पर न भेजें। बाजार, मेला व प्रदर्शनी में न भेंजे। संक्रमित व स्वस्थ पशुओं को को एक साथ चारा पानी न कराएं ।
क्या न करें ?
प्रकोप के समय प्रभावित क्षेत्रों से पशुओं को खरीद कर न लाएं। संक्रमित पशुओं का दूध बछड़े को न पिलाएं। मृत पशुओं को खुले में न फेंके। आबादी के पास न दफनाएं।
क्या करें उपचार ?
एंटी वायरल, एंटी इन्फ्लेमेटरी, एंटी बायोटिक्स दवाएं दें। तेज बुखार के लिए पैरासिटामोल दें। दर्द निवारक दें। घावों पर स्प्रे करें। रोग नियंत्रण के लिए टीके लगवाएं।
टीकाकरण ही बचाव
लाइलाज बीमारी का टीकाकरण ही प्रभावी रोकथाम का उपाय है। इसके टीके को लंपी प्रोवैकइंड कहते हैं जो बहुत सस्ता है और बीमारी के समान क्षीण वायरस से बना है।
कब लगाएं ?
3-6 महीने की आयु में, अगर टीका न लगा हो, तब कभी भी लगवाएं। झुंड में शामिल करने के 28 दिन पहले लें। इसे 2°C-8°C पर संग्रहीत करें। यह एक वर्ष की प्रतिरक्षा प्रदान करता है।
ठीक होने में कितना समय लगेगा?
लंपी स्किन डिजीजके ठीक होने से दर 96% से भी अधिक है। यदि द्वितीयक विषाणु पनप गए तो पूरी तरह ठीक होने में 6 महीने भी लग जाते हैं।