रेडियो पर क्रिकेट कमेंट्री स्मृतियों का पुनरावलोकन
हमारी स्मृतियां सिर्फ देखी हुई चीजों से ही नहीं बनती हैं बल्कि पढ़ी गई व सुनी गई चीजों से भी बनती हैं। आइए, जरा रेडियो पर क्रिकेट की पुरानी स्मृतियों का पुनरावलोकन करें।
स्मृतियां
उस समय तमाम इवेंट्स और खेलों का सजीव प्रसारण होता था, टी वी पर नहीं बल्कि रेडियो पर। हम रेडियो कमेंट्री सुनते हुएबड़े हो रहे थे। यह रेडियो कमेंट्री का स्वर्णकाल था।
स्वर्णकाल
वो हिंदी के जसदेव सिंह, सुशील दोषी, स्कंद गुप्त, मनीष देब, मंजुल, रवि चतुर्वेदी का और अंग्रेजी के नरोत्तम पुरी, अनुपम गुलाटी, सुरेश सरैया, सीतलवाड़, तल्यार खान आदि का समय था।
कमेंटेटर्स
इन शानदार कमेंटेटरों का समय था जो माइक्रोफोन के जरिए खेल मैदान के दृश्यों का हुबहू चित्र अपनी आवाज की कूंची से सुदूर बैठे श्रोताओं के मन मस्तिष्क में उकेर देते थे।
चित्र
उस समय रेडियो के माध्यम से बने चित्र और स्मृतियां आज भी इतनी चमकीली और उजली हैं कि उनके सामने अतीत में दृश्य माध्यमों सेबने चित्र फीके और धुंधले प्रतीत होते हैं।
मधुर यादें
1975 में विश्व कप हॉकी में जीत या 1983 में क्रिकेट विश्व कप में जीत की स्मृतियां 2007 और 2011 की जीत की स्मृतियों से गहरी और उजली हैं।
जीत
आज समय पूरी तरह से बदल गया है। हर मनोरंजन व खेल का टी वी यानेट पर ओवरडोज मौजूद है पर क्या हम उन्हें उतनी शिद्दत के साथ देखते हैं जितना रेडियो कमेंट्री में खोजाते थे।