अंतर

भारतीय परंपरा में धन 

चार पुरुषार्थ

भारतीय परंपरा में जीवन का ध्येय चार पुरुषार्थों को माना गया है। ये हैं धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष।

कुशलता

धर्म का ज्ञान होना जरूरी है तभी कार्य कुशलता आती है और कार्य में कुशलता से ही व्यक्ति जीवन में अर्थ अर्जित कर पाता है।

धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष

चार पुरुषार्थों को दो भागों में बांटा गया है धर्म व अर्थ और काम व मोक्ष। काम व अर्थ के साधन हैं धर्म व अर्थ। अर्थ से काम और धर्म से मोक्ष को साधा जाता है।

चेतना पर हावी

आज कल धन कमाना पूरी इंसानी चेतना पर हावी हो गया है। हम अपनी पूरी प्रतिभा व ऊर्जा केवल पैसा कमाने में व्यय कर रहे हैं।

कबीर

अधिकांश मनुष्यों को इच्छाएं कभी पूरी नहीं हो पाती। इसलिए कबीर को कहना पड़ा 

माया महा ठगनी हम जानी 

आदि शंकराचार्य

धन जितना आता है उसकी हवस उतनी ही बढ़ती जाती है, इसलिए आदि शंकराचार्य को कहना पड़ा 

जगत मिथ्या ब्रह्म सत्यं 

जगत के कार्य

किंतु जगत कार्य संपन्न करना भी तो अनिवार्य है। इसलिए कहा गया है 

भूखे भजन न होय गोपाला 

निष्काम कर्म

इसलिए भागवत गीता में कहा गया है कि अपने कर्म को निष्काम भाव से करते रहो।

अपरिग्रह

अधिकांश धर्मों में अपरिग्रह पर बहुत बल दिया गया है जिसका अर्थ है अति संचय नहीं करना है।

 धन कमाना कला है और उसे भोगना   उससे बड़ी कला  धन के पीछे अंतहीन बेतहाशा दौड़   से कैसे बचें  भारतीय समाज में उपहार देने की   परंपरा

आइए,परखें धन की महत्ता को कैसे निकलें 99 के चक्कर से कैसे करें धन का उचित व्यय नीड और डिजायर में अंतर भारतीय परंपरा में धन उपहार देने की परंपरा

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