रोहिणी आयोग
- सामाजिक न्याय के अंदर चल रहे घनघोर अन्याय को रोकेगा या
- क्या लोक सभा चुनाव के पहले का नया दांव है ?
- लोकसभा चुनावों के पहले चौंका सकती है मोदी सरकार
- विपक्ष पर हो सकता है रोहिणी आयोग का प्रहार
- ओबीसी सब कोटा
- भाजपा के लिए आफत या अवसर
क्या मोदी कर रहे हैं अति पिछड़ों को साधने की तैयारी ?
संविधान के अनुच्छेद 340
रोहिणी आयोग का गठन संविधान के अनुच्छेद 340 के तहत हुआ था। भारत का राष्ट्रपति अनुच्छेद 340 के अनुसार राष्ट्रपति पिछड़े वर्गो की जांच व उनकी दशा में सुधार करने के लिए आयोग का गठन कर सकता है।
कब प्रारंभ ?
रोहिणी आयोग 2अक्टूबर 2017 को अधिसूचित किया गया। इसे दिल्ली हाईकोर्ट के सेवा निवृत्त मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति जी. रोहिणी की अध्यक्षता में बनाया गया था।
समस्या क्या है ?
ओबीसी आरक्षण लाभ का अधिकांश हिस्सा प्रभावशाली ओबीसी समूहों द्वारा प्राप्त किया जा रहा है, इसलिए ओबीसी के भीतर अत्यंत पिछड़े वर्गों के लिए उप कोटे को मान्यता देना अति आवश्यक है।
सौपें गए कार्य
* केंद्र की ओ बी सी लिस्ट में शामिल करीब 2500 ओ बी सी जातियों की सब कैटेगरी तय करना।
* 27 फीसदी कोटा को उनके अनुपात में किस तरह दिया जाए,इसकी जांच करना।
उप वर्गीकरण जरूरी
* अनेक ओबीसी समुदाय ऐसे हैं जो सामाजिक आर्थिक तौर पर ज्यादा संपन्न है।
* ओबीसी के 37% समुदायों का नौकरियों में कोई प्रतिनिधित्व नहीं है।
* आरक्षण के फायदों का बंटवारा असमान है।
आरक्षण में आरक्षण
* ओ बी सी को नौकरियों व शैक्षणिक संस्थानों में 27% आरक्षण मिलता है।
* ओ बी सी के उप वर्गीकरण की सकारात्मक कार्यवाही से वंचित समुदायों को ज्यादा अवसर व लाभ मिलेगा।
ओ बी सी में तीन वर्ग
सर्वप्रथम 2015 में राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग ने ओ बी सी को तीन वर्गों में बांटने की सिफारिश की थी। पिछड़ा, अति पिछड़ा, सबसे पिछड़ा
रिपोर्ट सौंपी
रोहिणी आयोग की रिपोर्ट 31 जुलाई 2023 को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सौंप दी गई है।रिपोर्ट के अनुसार 97% ओ बी सी आरक्षण के प्रमुख लाभार्थी में हैं कुर्मी, यादव, जाट, सैनी, थेवर, वोक्कालिंगा।
विश्लेषण
आयोग ने 2018 में पिछले पांच वर्षो में ओ बी सी कोटे के तहत दी गई केंद्र सरकार की 1.3 लाख नौकरियों का विश्लेषण किया।साथ ही IIT, NIT, IIM, AIIMS के प्रवेश के आंकड़ों का भी विश्लेषण किया।
97% हिस्सा 25% को
ओ बी सी के लिए आरक्षित सभी नौकरियों व शिक्षा संस्थानों का 97% हिस्सा ओ बी सी केवल 25% हिस्से को प्राप्त हुआ। 24.95% हिस्सा केवल 10% ओ बी सी समुदायों को प्राप्त हुआ।
बहुत कम भागीदारी
नौकरियों व शैक्षणिक संस्थानों में 983 ओ बी सी समुदायों (कुल का 37%) का प्रतिनिधित्व शून्य है और 994 ओ बी सी उपजातियों का कुल प्रतिनिधित्व केवल 2.68% है।
घोर अन्याय
ओ बी सी की कुल 2650 जातियों में ओ बी सी की 1977 जातियों की नौकरियों व शैक्षणिक संस्थानों में नगण्य आरक्षण का लाभ मिल रहा है।सामाजिक न्याय के अंदर हो रहे इस घोर अन्याय को तत्काल रोक लगे।
सर्वोच्च न्यायालय
भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने भी आरक्षण हेतु अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जन जातियों के उप वर्गीकरण पर भी टिपण्णी की है। इसे सुप्रीम कोर्ट में कोटा के अंतर्गत कोटा (Quota within Quota) कहा जा रहा है।
अनुच्छेद 340 के तहत दो आयोग
अब तक अनुच्छेद 340 के तहत दो ही आयोग बनाए गए हैं। पहला पिछड़ा वर्ग आयोग यानी काका कालेलकर आयोग बनाया गया था। दूसरा आयोग मंडल कमीशन है, मंडल कमीशन की रिपोर्ट के आधार पर ही देश के 52% आबादी को केंद्र सरकार की नौकरियां और शिक्षा में 27% आरक्षण दिया जाता है।
मंडल आयोग में भी असहमति
मंडल आयोग में सारे पिछड़ों को एक जैसा मानकर एक महाश्रेणी रख कर उन्हें 27% आरक्षण दे दिया था। पिछड़ों में भी जातियों को स्थिति में जमीन आसमान का अंतर है। मंडल आयोग की रिपोर्ट में एक नोट असहमति का भी था जिसमें आरक्षण को विभिन्न उप श्रेणियों में बांटने की सिफारिश की गई थी लेकिन कुछ प्रभुत्वशाली जातियों के दबंग नेताओं ने लामबंद होकर इसे लागू नहीं होने दिया था।
जमीन आसमान जैसा है अंतर
अब जरा देख लें कि ओ बी सी जातियों की आपस में कितना अंतर है।
एक वर्ग है हिंदी बेल्ट में भू स्वामित्वधारी जाट, यादव, कुर्मी, कर्नाटक में वोकालिंगा, महाराष्ट्र में कुनबी जैसा किसान समुदाय।
दूसरा वर्ग है बड़ी तादाद में ऐसे किसान समुदाय जो संख्या बल में कम और खेती की जमीन भी कम है।
तीसरा वर्ग है कारीगर जातियों का जुलाहे, लोहार, बढ़ई जैसी हस्तशिल्प में लगी अन्य जातियों का है।
चौथा वर्ग है सेवा कार्य करने वाली जातियों जैसे धोबी, नाई, गवईयों आदि का है।
पांचवां वर्ग है घुमंतू और लांछित समझी जाने वाली जातियों का है। इनमें कुछ भिक्षाटन, कुछ अपराध कर्म करने वाली जातियां हैं।
सर्वसंपन्न व वंचित जातियां
ओ बी सी में एक तरफ जाट, कुर्मी, यादव, वोकालिंगा जैसी साधन संपन्न जातियां हैं जो अगड़ी जातियों के लगभग बराबर हो गई हैं, तो दूसरी ओर जुलाहे, नाई, मुसहर आदि जैसी साधनविहीन वंचित जातियां हैं। जबकि कुछ जातियां ऐसी हैं जो दलित जातियों से भी दयनीय दशा में हैं।
सीधा तरीका
ओ बी सी नाम की महाश्रेणी के भीतर मौजूद इस गैर बराबरी से निपटने का सीधा तरीका है कि इस महाश्रेणी को हासिल 27% आरक्षण कई श्रेणियों में बांट दिया जाए।
क्यों जरूरी ?
जिन वजहों से ओ बी सी आरक्षण देना जरूरी है ठीक उन्हीं कारणों से ओ बी सी के बड़े दायरे में शामिल सर्वाधिक पिछड़ी जातियों के सदस्यों को उपलब्ध आरक्षण में से हिस्सा देना जरूरी है।
कानूनी अड़चन नहीं
ऐसा करने में कानून की कोई अड़चन भी नहीं है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने मशहूर इंदिरा साहनी मामले में इस विचार को मान्यता दी थी और अदालत का वो फैसला अब भी बाध्यकारी है।
दिक्कत कहां है ?
सर्वोच्च न्यायालय और रोहिणी आयोग आरक्षण के अंदर आरक्षण देने के लिए सहमत है। तब फिर दिक्कत कहां है? असली दिक्कत राजनीति के मोर्चे पर है।
मंडल की काट कमंडल
बीजेपी के लिए ओबीसी वोट बैंक कितना जरूरी है यह तो पिछले चुनावी नतीजों पर नजर डालने साफ हो ही जाता है। साल 1990 के दशक में भारतीय जनता पार्टी को मंडल की राजनीति का मुकाबला करने के लिए बहुत कठिन संघर्ष करना पड़ा था और इसका कार्ड पार्टी ने हिंदुत्व में खोजने की कोशिश की।
क्षेत्रीय दल
भले ही साल 1998 और साल 1999 के लोकसभा चुनाव से पहले भारतीय जनता पार्टी ने लालकृष्ण आडवाणी और अटल बिहारी वाजपेई के नेतृत्व में कड़ी मेहनत कर जीत हासिल कर ली और गठबंधन सहयोगियों के साथ एनडीए सरकार को बनाने में कामयाब हो गई। लेकिन उस वक्त भी क्षेत्रीय दल बहुत मजबूत बने रहे। साल 1998 और 1999 में क्षेत्रीय दलों को क्रमशः 35.5% और 33.9% वोट मिले।
इन क्षेत्रीय दलों के वोट बैंक का एक बहुत बड़ा हिस्सा ओबीसी वोटो का है। अनेक क्षेत्रीय दल जाति आधारित रहे हैं जैसे राष्ट्रीय लोक दल जाट पर, राष्ट्रीय जनता दल यादवों पर, बहुजन समाज पार्टी जाटवों पर आदि। इनके साथ ही एन सी पी, आप, सी पी एम आदि भी जातीय जनगणना की पक्षधर हैं। बड़ी पार्टियों में केवल भा ज पा और तृणमूल ही जातीय जनगणना केखिलाफ हैं।
कांग्रेस
राष्ट्रीय दलों की कोशिश सभी जातियों को साथ चलने की रही है। वो अब तक जातीय जनगणना से कन्नी काटते आये थे। हाल ही कांग्रेस ने अपना स्टैंड चेंज कर लिया है और अब वह जातीय जनगणना की प्रबल पक्षधर हो गई । एक समय कांग्रेस का नारा हुआ करता था
जाति पर न पांत पर, मोहर लगाओ हाथ पर
क्षेत्रीय दलों से तालमेल करने के बाद कांग्रेस का स्टैंड बदलना मजबूरी हो गई है। कांग्रेस सभी राज्यों ने अपने अपने यहां जातीय जनगणना कराने की घोषणा कर दी है। अब कांग्रेस जगह जगह जातीय जनगणना सम्मेलन कराने जा रही है। अब कांग्रेस कांशीराम का नारा लगाने लगी है।
जिसकी जितनी संख्या भारी उसकी उतनी हिस्सेदारी
कांग्रेस का अब यह कहना है कि जातीय जनगणना समय की मांग है। कांग्रेस कार्य समिति ने 9 अक्टूबर 2023 को जातीय जनगणना के साथ ओ बी सी, एस सी, एस टी को आबादी के हिसाब से भागीदारी देने का प्रस्ताव सर्वसम्मति से पास कर दिया है। कांग्रेस ने यह भी कहा है वह एक कानून लाकर आरक्षण की मौजूदा सीमा 50%को हटा देगी।
बी जे पी का दांव
सत्तारूढ़ दल की निगाहें अपने अति पिछड़े वोटों को सहेजने की है। समझा जा रहा है कि रोहिणी कमीशन की रिपोर्ट के माध्यम से ओबीसी के बीच अति पिछड़े और मजबूत पिछड़ों का अंतर दिखाकर राजनीतिक लाभ लिया जा सकता है।
बी जे पी की मुश्किल
ऐसा माना जाता रहा है कि उत्तर भारत में ओबीसी आरक्षण का लाभ यादव ,कुर्मी, मौर्य, जाट, गुर्जर, लोध, माली जैसी जातियों को ही मिला है। बीजेपी के साथ दिक्कत यह है कि ओबीसी की सभी दबंग और संपन्न जातियां बीजेपी की वोटर बन चुकी है। यूपी व बिहार में यादव बीजेपी के साथ नहीं है, पर दूसरे राज्यों में यादव भी बीजेपी को वोट दे रहे हैं। रोहिणी कमिशन रिपोर्ट में अगर अति पिछड़ों को फायदा पहुंचाने में इन संपन्न जातियों को नुकसान होता है तो बीजेपी के लिए मुश्किल हो जाएगी।
अब जाति का मुकाबला जाति से
ओ बी सी के दायरे में कुछ जातियों के दबंग व बड़े किसान समुदाय हैं, उनके समर्थन से ही मोदी को नई ताकत मिली है। मोदी सरकार कभी नहीं चाहेगी कि इन समुदायों की नाराजगी का सबब बने और ये समुदाय उससे दूर हो जाएं। जातियों को विभिन्न कोटियों में बांट कर लाभ पहुंचाने की राजनीति बहुत जोखिम भरी होती है। इसमें इंस्टेंट हानि व लाभ दोनों की संभावनाएं हैं।
ओबीसी लिस्ट का होगा विस्तार
कहा जा रहा है कि रोहिणी आयोग में ओबीसी लिस्ट में उन ओबीसी जातियों को भी शामिल करने की सिफारिश की गई है जिन्हें राज्यों में ओबीसी का दर्जा था पर वह केंद्र की लिस्ट में शामिल नहीं थी। अति पिछड़ों के नेता ओमप्रकाश राजभर से लेकर संजय निषाद तक ओबीसी आरक्षण को वर्गीकृत करने के मुद्दे को लेकर आंदोलन तक कर चुके हैं।
राजनाथ चूके
राजनाथ सिंह जब यूपी के मुख्यमंत्री थे उन्होंने अति पिछड़ो को बांटने की कोशिश की थी पर बाद में कोर्ट ने रोक लगा दी। जून 2001 में राज नाथ सिंह द्वारा गठित सामाजिक न्याय समिति ने सिफारिश की 27% कोटा में यादव का हिस्सा 5% और 9% में 8 जातियों को हिस्सा दिया जाए बाकी 70 अन्य जातियों को दिया जाए। 2002 के विधानसभा चुनाव में भाजपा 403 में से 88 सीटों पर सिमट गई जो 1996 से लगभग आधी थी। चुनाव में भाजपा को मिली बुरी हार के चलते भाजपा की फिर हिम्मत नहीं हुई कि वह दोबारा इस संबंध में कोशिश भी करे।
वी पी सिंह को पिछड़ों ने वोट नहीं दिया ?
विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार ने मंडल कमीशन की रिपोर्ट लागू जरूर किया था पर उन्हें ओबीसी समुदाय का वोट हासिल करने में सफलता नहीं मिली थी।
शह मात का खेल चल रहा है ।
2024 के महासागर के लिए सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच शह और मात का खेल लगातार चल रहा है। ऐसा माना जा रहा है कि जातिगत जनगणना का दबाव सरकार पर बढ़ता जा रहा है। विपक्ष के इस मुद्दे की काट सरकार को नहीं मिल पा रही है। इसलिए जल्द से जल्द रोहिणी कमीशन की रिपोर्ट संसद में लाई जा सकती है। जाहिर है इस मुद्दे पर विपक्ष की बोलती बंद हो सकती है। बीजेपी को अपने कोर वोटर के नाराज होने का भी खतरा है। पार्टी के अंदर भी इसे पेश किए जाने और लागू किए जाने को लेकर मतभेद है।
ब्रह्मास्त्र है तैयार
रोहिणी आयोग का ब्रह्मास्त्र सरकार ने तैयार करके रखा है। इस आयोग की रिपोर्ट काफी पहले तैयार हो गई थी पर इसे बार बार एक्सटेंशन देकर 31जुलाई 2023 में राष्ट्रपति को सौंप दिया गया। रोहिणी आयोग को लागू करना दो धारी तलवार की तरह है। विश्वनाथ और राजनाथ असफल हो चुके हैं। पर मोदी अनेक साहसिक और युगांतरकारी निर्णयों के लिए जाने जाते हैं। इसलिए वह इसे लागू करने का निर्णय ले सकते हैं।
13 बार एक्सटेंशन क्यों ?
सवाल उठता है कि 13 बार तरह तरह के बहाने बनाकर सरकार रोहिणी आयोग को क्यों एक्सटेंशन देती रही और अब ठीक चुनाव के पहले क्यों राष्ट्रपति को सौंप दिया। कहीं यह संसद का सेशन बुलाकर अति पिछड़ों को साधने की तैयारी तो नहीं है ?
क्या जातीय जनगणना की काट है रोहिणी आयोग ?
इंडिया गठबंधन जातीय जनगणना को अपना मास्टर स्ट्रोक समझ रहा है कहीं मोदी रोहिणी आयोग का ब्रह्मास्त्र चलाकर उसे ध्वस्त तो नहीं करेंगे। ओ बी सी का सब कोटा भाजपा के लिए आफत है या अवसर, ये कुछ महीने बतला देंगे।
मोदी की कोशिश
फिलहाल मोदी की कोशिश यही रहेगी कि उनका दामन साफ रहे और रोहिणी आयोग की सिफारिश की शक्ल जो बम वह फोड़ना चाह रहे हैं, वो दूसरे के पाले में फटे, और जातीय जनगणना के रूप में इल्जाम भी इंडिया गठबंधन पर आए।
सामाजिक उथल पुथल की सम्भावना
बहराल रोहिणी आयोग लागू करने यानी ओ बी सी के 27 % आरक्षण में उपश्रेणियों के बीच बंटवारे की घोषणा से राजनीतिक भूचाल आना तय है। इसकी घोषणा से मंडल आयोग जैसा सामाजिक आलोड़न देखने को मिल सकता है।