सानिया मिर्जा : स्पोर्ट्स आइकॉन
एक यात्रा का अंत
उनके पहले तक भारत में टेनिस एक एलीट और नर्म मिजाज़ खेल था जिसे सानिया ने
पावर और रफ टफ खेल में बदल दिया।
“शुक्रिया सानिया,युवा भारतीय लड़कियों की एक पूरी पीढ़ी को
ये बताने के लिए कि सपने कैसे देखे जाते हैं।
‘खेल से सन्यास’ की ‘पर्वत सी पीर’
आखिर क्या होता है खेल को ‘अलविदा’ कहना। खेल से ‘सन्यास’ लेना। इसे हम,आप या कोई भी खेल प्रेमी कहां समझ पाएंगे। उनके लिए इसे समझ पाना इसलिए मुमकिन नहीं होता कि मैदान से उनका एक चहेता रुखसत होता है,तो दो और खिलाड़ी उसकी जगह भरने को आ जाते हैं। प्रसंशक हैं कि पहले को भुला नए के साथ हो लेते हैं।
सबसे प्रिय वस्तु से विछोह
पर एक खिलाड़ी के लिए ऐसा कहाँ संभव होता है। खेल से सन्यास का मतलब एक आम आदमी के लिए चाहे जो हो, लेकिन एक खिलाड़ी के लिए ये उसकी सबसे प्रिय वस्तु से विछोह है। एक यात्रा का अंत है। अपने सबसे प्रिय सपने का अचानक से लुप्त हो जाना है। एक ऐसा सपना जो उसके दिल में जन्मा और बरसो बरस बड़े जतन से पाला पोसा और फिर अचानक एक दिन उससे दूर कहीं बहुत दूर चला जाता है। फिर कभी ना मिल पाने को। ये अंत है। ये बिछोह है। ये दुख है। ये संताप है। ये भय भी है।
सच तो ये है ‘खेल से सन्यास’ की इस ‘पर्वत सी पीर’ को सिर्फ और सिर्फ वो खिलाड़ी ही समझ और महसूस कर पाता है जो खेल से सन्यास लेता है। उसे अलविदा कहता है।
महान इतावली फुटबॉलर फ़्रांचेस्को तोत्ती का विदाई वक्तव्य
इसे समझना है तो एक बार महान इतावली फुटबॉलर फ़्रांचेस्को तोत्ती के विदाई वक्तव्य को ध्यान से देखें। वे एएस रोमा से 25 साल खेलने के बाद खेल को अलविदा लेते हुए कह रहे थे- “आपको पता नहीं है पिछले दिनों में पागलों की तरह अकेले में बैठकर कितना रोया हूँ। काश कि मैं कविता लिख पाता। लेकिन ये मुझे नहीं आता। पिछले 25 सालों से में फुटबॉल के मैदान में पैरों की ठोकर से कविता लिखने की कोशिश कर रहा था,और अब सबकुछ खत्म हो गया है।….अब मैं घास की गंध को इतने करीब से नहीं अनुभव कर पाऊंगा। अब जब मैं दौडूंगा तो सूर्य मेरे चेहरे को ऊष्मा नहीं देगा। मैं बार बार खुद से पूछ रहा हूँ मुझे इस सपने से क्यूं जगाया जा रहा है। लेकिन ये सपना नहीं सच है,और अब मैं बूढ़ा हो गया हूँ। मैं डर गया हूँ। मुझे डरने की मोहलत दीजिए।”
सौरव गांगुली
सौरव गांगुली अपनी किताब ‘एक सेंचुरी काफी नहीं’मैं अपने सन्यास के बारे में लिख रहे थे “मेरे दिल में तरह तरह के जज़्बात थे। मैं बेहद गमज़दा था मेरी ज़िंदगी का सबसे बड़ा प्यार दूर जा रहा था।”
रोजर फेडरर
बीते सितंबर लंदन में लेवर कप के बाद सन्यास लेते समय के महानतम टेनिस खिलाड़ी रोजर फेडरर को जार जार रोते हुए देखिए तो एहसास होगा कि एक खिलाड़ी के खेल से सन्यास के मायने क्या होते हैं।
सानिया मिर्ज़ा खेल से विदा
फिर बीते शुक्रवार, 27 जनवरी 2023 को मेलबर्न पार्क के रॉड लेवर अरीना में भारत की सानिया मिर्ज़ा की आखों से बहते पानी को देखिए। और एक खिलाड़ी को खेल से विदा कहने का मतलब समझिए।
सानिया के साथी खिलाड़ी रोहन बोपन्ना
उस दिन मिश्रित युगल के फाइनल में ब्राजील के लुईसा स्तेफानी और राफेल मतोस की जोड़ी से 6-7 (2-7), 2-7 से हार जाने के बाद ट्रॉफी प्रेजेंटेशन स्पीच में सानिया के साथी खिलाड़ी रोहन बोपन्ना कह रहे थे “ये सच है, सानिया के साथ खेलना स्पेशल है। हमने पहला मिश्रित युगल उस समय साथ खेला था जब वो 14 साल की थी और खिताब जीता था। आज यहां हम आखिरी ग्रैंड स्लैम मैच खेल रहे हैं। दुर्भाग्य से हम खिताब नहीं जीत सके। लेकिन शुक्रिया उस सब के लिए जो तुमने भारतीय टेनिस के लिए किया।” पास खड़ी सानिया थी कि अपने आसुंओं को बहने से रोकने की असफल कोशिश किए जा रही थीं। और आंसू थे कि बहे जाते जाते थे।
बिछोह से उपजे दुख के आंसू
सानिया की आंखों के ये आंसू हार के आंसू नहीं थे बल्कि ये अपने पैशन अपने सपने अपनी ज़िंदगी के सबसे अज़ीज हिस्से से बिछोह से उपजे दुख के आंसू थे। हालांकि वे कह रही थीं “अगर मैं रो रहीं हूँ ये दुख के नहीं खुशी के आंसू हैं। मैं विजेताओं की खुशी के रंग को भंग नहीं करना चाहती।”वे ऐसी ही हैं । इतनी ही उद्दात्त। दुख ऐसे ही उद्दात्त बना देता है मनुष्य को।
सानिया का आखिरी ग्रैंड स्लैम मैच
ये 36 वर्षीया सानिया का आखिरी ग्रैंड स्लैम मैच था। उनके 18 साल लंबे खेल जीवन का समापन। खेल से सन्यास। भले ही औपचारिक रूप से उनका आखिरी प्रतियोगिता फरवरी में दुबई इंटरनेशनल हो। पर वास्तव में उनके खेल जीवन का वास्तविक समापन यही था।
सेरेना विलियम्स ने कहा था
उन्होंने खेल से विदा कहने को वही मैदान चुना जहां से उन्होंने अपने ग्रैंड स्लैम कॅरियर की शुरुआत की थी साल 2005 में। तब वे तीसरे राउंड तक पहुंची थी। जहां वे उस साल की चैंपियन सेरेना विलियम्स से हार गईं थी। वे हार ज़रूर गई थीं। लेकिन इस हार ने उनमें विश्वास भरा था कि उनके लिए एक खुला आसमां सामने है उड़ान भरने के लिए। उस मैच के बाद सेरेना ने रिपोर्टर्स से बात करते हुए कहा था “मैं विशेष रूप से भारत से एक खिलाड़ी को इतना अच्छा खेलते हुए देखकर रोमांचित हूँ। उसका खेल बहुत सॉलिड है और वह अभी केवल 18 साल की है। उसका भविष्य उज्जवल है।”
जूनियर स्तर पर अनेक उपलब्धि हासिल
6 साल की उम्र से टेनिस खेलना शुरू करने वाली सानिया सीनियर वर्ग में खेलने से पहले ही जूनियर स्तर पर अनेक उपलब्धि हासिल कर चुकी थी। जूनियर लेवल पर 10 एकल और 13 युगल खिताब वे जीत चुकी थीं जिसमें 2003 का जूनियर विम्बलडन युगल खिताब भी शामिल था जो उन्होंने एलिसा क्लेबिनोवा के साथ जीता था।
‘डब्ल्यूटीए नवोदित खिलाड़ी’
2005 में ऑस्ट्रेलियन ओपन में खेलने के बाद फरवरी में हैदराबाद में डब्ल्यूटीए खिताब जीता और कोई डब्ल्यूटीए खिताब जीतने वाली वे पहली भारतीय महिला बनी। उसी साल वे यूएस ओपन में प्री क्वार्टर फाइनल तक पहुंची जहां अंततः चैंपियन मारिया शारापोवा से हारीं। उस साल की सफलता ने उन्हें 2005 की ‘डब्ल्यूटीए नवोदित खिलाड़ी’ के खिताब से नवाजा। उसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा और अपने व देश के लिए अनेक उपलब्धियां हासिल कीं।
सौ के अंदर रैंकिंग हासिल करने वाली वे पहली भारतीय महिला
अगस्त 2007 में उन्होंने 27वीं रैंकिंग हासिल की। सौ के अंदर रैंकिंग हासिल करने वाली वे पहली भारतीय महिला थीं। इससे पहले केवल दो भारतीय पुरुष खिलाड़ी, रमेश कृष्णन (उच्चतम 23वीं) और विजय अमृतराज (उच्चतम 18वीं), 30 के अंदर रैंकिंग हासिल कर सके थे। अगले चार सालों तक वे 35वीं रैंकिंग के भीतर रहीं और दुनिया की श्रेष्ठ महिला खिलाड़ियों में उनकी गणना होती रही।
मिक्स्ड डबल्स में 6 ग्रैंड स्लैम खिताब
2012 में कलाई में चोट के बाद एकल को छोड़कर पूरी तरह युगल खिलाड़ी बन गईं। उन्हें अपने कॅरियर के शीर्ष पर जो पहुंचना था। उन्होंने डबल्स में 6 ग्रैंड स्लैम खिताब जीते। 2009 में ऑस्ट्रेलियन ओपन और 2012 में फ्रेंच ओपन महेश के साथ और 2014 में यूएस ओपन ब्राज़ील के ब्रूनो सोरेस के साथ मिश्रित युगल के तीन खिताब।
महिला युगल में तीन ग्रैंड स्लैम जीते
महिला युगल में भी उन्होंने तीन ग्रैंड स्लैम जीते। उनकी सबसे सफल और शानदार जोड़ी स्विट्जरलैंड की मार्टिना हिंगिस के साथ बनी जिसे ‘संतीना’के नाम से जाना गया(सानिया का SAN और मार्टिना का TINA)। इस जोड़ी ने ना केवल 14 खिताब जीते जिसमें 2015 के विम्बलडन और यूएस तथा 2016 का ऑस्ट्रेलियन खिताब शामिल हैं बल्कि लगातार 44 मैच जीतने का रिकॉर्ड भी बनाया।
43 डब्ल्यूटीए खिताब
इस दौरान वे 91 हफ्तों तक डबल्स की नंबर एक खिलाड़ी रहीं और अपने खेल जीवन में कुल 43 डब्ल्यूटीए खिताब जीते।
भारत में टेनिस के स्वरूप को बदल
वे एक असाधारण खिलाड़ी थीं जिन्होंने अपनी उपलब्धियों और अपने खेल से भारत में टेनिस के स्वरूप को ही बदल दिया। वे मार्टिना नवरातिलोवा और स्टेफी ग्राफ के खेल को देखते हुए बड़ी हो रही थीं और उनके समय तक विलियम्स बहनें परिदृश्य पर आ चुकी थीं। उन्होंने भी आक्रामक खेल को अपनाया। उनके फोरहैंड शॉट बहुत शक्तिशाली होते थे। वे उनके समकालीन किसी खिलाड़ी जितने ही शक्तिशाली होते। सर्विस रिटर्न्स भी बहुत शक्तिशाली और कोणीय होते। दरअसल उनके खेल की एक कमजोरी थी कोर्ट में मूवमेंट की। उनका कोर्ट में मूवमेंट बहुत धीमा था और इसकी भरपाई अपने शक्तिशाली फोरहैंड और आक्रामक खेल से करतीं। उनके पहले तक भारत में टेनिस एक एलीट और नर्म मिजाज़ खेल था जिसे सानिया ने पावर और रफ टफ खेल में बदल दिया।
आक्रामकता, बिंदासपन और साफगोई जन्मजात
आक्रामकता, बिंदासपन और साफगोई उनमें जन्मजात थी और उनके स्वाभाविक चारित्रिक गुण। वे जितनी आक्रामक मैदान में प्रतिद्वंदी के प्रति होती, उतनी ही आक्रामक मैदान के बाहर अपने विरोधियों के प्रति। वे अपेक्षाकृत संभ्रांत परिवार से थीं इसलिए उन्हें उस तरह से संसाधनों के अभावों का सामना नहीं करना पड़ा जैसे अमूमन भारतीय महिला खिलाड़ियों को करना पड़ता है। फिर उनके माता पिता हर समय उनके साथ खड़े रहे।
ड्रेसकोड को लेकर रूढ़िवादी समाज सहज नहीं
दरअसल उनके संघर्ष दूसरी तरह के थे। वे महिला थी और मुस्लिम भी। और वे एक ऐसे ग्लैमरस खेल को चुन रही थीं जिसके ड्रेसकोड को लेकर रूढ़िवादी परंपरागत मुस्लिम समाज सहज नहीं हो सकता था। उनका विरोध होना स्वाभाविक था। और खूब हुआ। उनके खिलाफ फतवे जारी किए गए। 2005 में वे केवल 18 साल की थीं और उस साल सितंबर में कोलकाता में सनफीस्ट ओपन खेलने गईं तो उनके कपड़ों को लेकर पहला फतवा जारी किया गया। लेकिन वे गईं वहां। वे वहां कड़ी सुरक्षा में रहीं। एक 18 साल की लड़की जो चारों और से सुरक्षा घेरे में रहती हो कैसी मानसिकता में जी और खेल रही होगी। लेकिन वो किसी और मिट्टी की बनी थी। उसने ‘गिव अप’ नहीं किया। उसने टेनिस की ऑफिसियल ड्रेसकोड का पालन किया। स्कर्ट और शॉर्ट में खेली। उसने साहसिक इबारत वाली टी शर्ट पहनने से भी गुरेज नहीं किया।
विवाद और विरोध साये की तरह
विवाद और विरोध उसके साथ साये की तरह थे। फिर वो हॉफमैन कप के एक मैच के दौरान राष्ट्रीय ध्वज के अपमान का आरोप हो, विवाह पूर्व संबंधों का या पाकिस्तानी क्रिकेटर शोएब मलिक का उनके साथ विवाह पूर्व हैदराबाद में रहना हो या उनके साथ विवाह का हो, उन्होंने सभी का सामना किया और आगे बढ़ीं। खेल प्रशासन और टीम कम्पोज़िशन को लेकर भी विवाद हुए। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। उन्होंने हर बार स्टैंड लिया और स्पष्ट स्टैंड लिया।
महिलाओं की स्थिति को लेकर स्पष्ट स्टैंड
उनका सबसे बड़ा और स्पष्ट स्टैंड महिलाओं की स्थिति को लेकर था। अखबारों में कहा गया कि सानिया मिर्जा मानती हैं ‘भारत में स्त्रियों का सम्मान नहीं होता।’ इस बात पर उनकी कड़ी आलोचना हुई। पर उन्होंने कहा ‘मैने ये नहीं कहा भारत में स्त्रियों का सम्मान नहीं होता। अगर ऐसा होता तो मैं आज यहां नहीं होती। लेकिन मैं बहुत भाग्यशाली हूँ,बहुत ज़्यादा। लेकिन हज़ारों अन्य स्त्रियां इतनी भाग्यशाली नहीं हैं। उनका शारीरिक और यौन शोषण होता है और उन्हें अपने सपनों को पूरा करने की आज़ादी नहीं है क्योंकि वे स्त्रियां हैं।’ आज भी उनका स्टैंड स्पष्ट है।
स्पोर्ट्स वीमेन आइकॉन
पी टी उषा के बाद वे भारत की सबसे बड़ी स्पोर्ट्स वीमेन आइकॉन थीं। सानिया मैरी कॉम और साइना नेहवाल के साथ स्टार स्पोर्ट्स वोमेन की त्रयी बनाती हैं। पीवी सिंधु उनके बाद आईं। अपने साहसिक,कभी हार ना मानने, सतत संघर्ष शील और फेमिनिस्ट सानिया नई पीढ़ी की भारतीय महिला खिलाड़ियों के लिए एक बड़ी प्रेरणा स्रोत हैं। तभी तो स्टार रेसलर विनेश फोगाट जो खुद खेल प्रशासन और डब्ल्यूएफआई के बाहुबली और दबंग माने जाने वाले अध्यक्ष के खिलाफ मोर्चा खोलने वाली उनके सन्यास पर इतनी खूबसूरत बात कह सकीं कि “शुक्रिया सानिया,युवा भारतीय लड़कियों की एक पूरी पीढ़ी को ये बताने के लिए कि सपने कैसे देखे जाते हैं। उनमें से मैं भी एक हूँ। आप तमाम चुनौतियों के बीच पूरे जुनून के साथ खेलीं। आपका दाय भारतीय महिला खिलाड़ियों के लिए बहुत मायने रखता है। सम्मान और बधाई !”