परंपराओं और आस्थाओं का त्यौहार छठ महापर्व
चार दिनों तक चलने वाला त्योहार
छठ पूजा पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड में सूर्य और छठ माता की उपासना संबंधी चार दिनों तक चलने वाला महापर्व है।
पर्व का लक्ष्य
यह निःसंतानों को संतान देने और संतानों की रक्षा और उनकी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए मनाया जाता है। परिवार की तरक्की व खुशहाली इस पर्व का लक्ष्य है।
वर्ष में दो बार
यह वर्ष में दो बार मनाया जाता है। चैत्र मास में और कार्तिक मास में। दीपावली के बाद भैया दूज के बाद प्रारंभ हो जाता है, कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से सप्तमी की सुबह तक मनाया जाता है।
विदेश में भी त्यौहार छठ महापर्व की धूम
पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार के लोग देशभर में जहां कहीं भी गए वहां उन्होंने इस पर्व को प्रचलित कर दिया प्रवासी भारतीयों में भी यह बहुत लोकप्रिय हो गया है और वे लोग इसको उत्साह व उल्लास पूर्वक मनाते हैं। यह मॉरीशस, गुयाना, फिजी, त्रिनिदाद, सूरीनाम, जमैका में भी धूमधाम से मनाया जाता है।
सूर्य की बहन
छठी माता को सूर्य देवता की बहन और ब्रह्मा जी की मानस पुत्रीमाना जाता है। छठी माता सूर्य के पूजन करने से खुश होकर हमारी मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं।
मां दुर्गा का रूप कात्यायनी
छठी माता को कात्यायनी के रूप में भी जाना जाता है जिनकी पूजा नवरात्र के छठवें दिन की जाती है । इस प्रकार छठी माता मां दुर्गा के अनेक रूपों में से एक हैं।
वैदिक संस्कृति की झलक
छठ मनाने की अनेक पौराणिक कथाएं प्रचलित है लेकिन इतना तय है कि छठ महापर्व वैदिक काल से ही चला आ रहा है। इसमें वैदिक आर्य संस्कृति की स्पष्ट झलक दिखती है। ऋग्वेद में भी सूर्य, उषा, प्रकृति आदि के पूजन का खूब उल्लेख मिलता है।
अदिति व आदित्य
ऐसी मान्यता है कि देवासुर संग्राम में जब देवता कमजोर पड़ने लगे, तब देवताओं की माता अदिति ने सूर्य मंदिर में जाकर छठी मैया की आराधना की। तब छठी मैया की कृपा से उन्हें तेजस्वी पुत्र आदित्य की प्राप्त हुयी, जिसने देवताओं को असुरों पर विजय दिलाई।
अंग देश के राजा कर्ण
सूर्य पूजा का महाभारत में बहुत उल्लेख मिलता है। उस समय आज के बिहार के भागलपुर, जमालपुर, मुंगेर आदि अंग देश कहलाते थे जिनमें सूर्य के प्रबल उपासक कर्ण का शासन था। कर्ण को सूर्य पुत्र भी कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि छठ पूजा की शुरुआत महाभारत काल में कर्ण के द्वारा हो गई थी।
सीता, द्रौपदी, राजा प्रियव्रत
माता सीता द्वारा छठ पूजा, द्रौपदी द्वारा पारिवारिक सुख हेतु छठी मैया की पूजा व और राजा प्रियव्रत की कथा का भी उल्लेख पौराणिक साहित्य में मिलता है।
चार दिन चलने वाला त्यौहार छठ महापर्व
छठ पूजा चार दिन तक चलने वाला त्योहार है।पहला दिन नहाए खाए, दूसरा दिन खरना, तीसरा दिन सायं अर्ग चौथा दिन उषा अर्ग।
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छठ पूजा का पहला दिन: नहाए खाए कहलाता है
साफ सफाई कमरा अलग
पहले दिन नहाए खाए में घर की अच्छी तरह से साफ सफाई की जाती है और एक कमरा छठी मैया के सामग्री हेतु अलग कर दिया जाता है।
सूर्य व छठी मैया की पूजा
सूर्य भगवान और छठी मैया की पूजा की जाती है । मन,कर्म, वचन की शुद्धता के साथ व्रत संपन्न करने की के लिए आशीर्वाद मांगा जाता है।
वस्त्र व भोजन
छठ व्रत में सफेद या काले वस्त्र धारण नहीं किए जाते। पहले दिन सेंधा नमक के साथ बनी कद्दू या लौकी की सब्जी, चने की दाल व अरवा चावल को बनाकर प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है।
छठ पूजा का दूसरा दिन: खरना
निर्जल उपवास
व्रती पूरे दिन निर्जल उपवास रखता है और शाम को एक ही समय भोजन ग्रहण करता है। इस भोजन को ही खरना कहा जाता है।
खरना
खरना एक विशेष प्रकार से पकाया गया प्रसाद है। चावल को गन्ने के रस में पकाया जाता है। इसे रसियाव भी कहते हैं। चावल का पीठा एवं घी चुपड़ी रोटी बनाई जाती है। इसे ही खरना कहते हैं ।
36 घंटे का उपवास
शाम को पूजा करने के बाद पहले व्रती प्रसाद के रूप में इसे ग्रहण करता है। इसके बाद 36 घंटे का निर्जल व्रत रखा जाता है।
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प्रसाद वितरण
फिर परिवार के अन्य सदस्य भी इसे भोजन के रूप में ग्रहण करते हैं । फिर समाज के अन्य लोगों में भी इसे बांटा जाता है। नमक और चीनी का उपयोग इसे बनाने में नहीं किया जाता।
छठ पूजा का तीसरा दिन: सायं अर्ध्य
प्रसाद तैयार
तीसरे दिन पूरी साफ सफाई के साथ प्रसाद तैयार किया जाता है। गुड़ व गेहूं के आटे से बना ठेकुआ, गुड़ चावल के आटे से बना कसार, अनेक तरह के फल व सब्जियां, चीनी से बने खिलौने आदि को मिट्टी के बर्तनों में तैयार कर बांस के बर्तनों में रखा जाता है।
दउरा या सूप
व्रती व्यक्ति इसे दऊरा अर्थात एक प्रकार की गहरी डलिया या बांस के सूप में रखता है। इस प्रकार के सूप या डलिया कम से कम 2 तैयार किए जाते हैं अधिक से अधिक अपनी सामर्थ्य व श्रद्धा अनुसार 5,7 या 9 कुछ भी तैयार किए जा सकते हैं।हर इच्छा के लिए अलग अलग सूप तैयार करने की परंपरा है। इन सूपों को एक बड़ी डलिया मेंरखकर पीले कपड़े से बांधकर सिर पर रखकर जलराशि तक ले जाते हैं।
नहाय
व्रती सूरज डूबने से कम से कम एक घंटा पहले नदी या सरोवर में उतरता है और डुबकी लगाकर नहाने के पश्चात कमर तक जल में खड़ा होकर सूर्य भगवान की पूजा करता है। हाथ जोड़कर ॐ सूर्याः नमः जाप करते हुए अपनी गलतियों की क्षमा मांगता है और अपने परिवार की खुशहाली काआशीर्वाद मांगता है।
सायं अर्ग
पूरे परिवार का एक-एक सदस्य टोकरी को व्रती को चढ़ाने के लिए देते हैं। वह सदस्य टोकरी पर जल डाल कर अर्ग देता है। फिर रात्रि में घर आकर छठ मैया के गीत गाए जाते हैं और भोर के लिए सूप से पुरानी सामग्री हटाकर नया प्रसाद डालकर तैयार कर लिया जाता है।
छठ पूजा का अंतिम चौथा दिन: ऊषा अर्ध्य
ऊषा अर्ध्य और मनोकामना
सूरज उगने से 1 घंटे पहले व्रती नदी या सरोवर के पास पहुंच जाते हैं ।व्रती डुबकी लगाकर नहाकर सूरज भगवान की पूजा करते हैं, फिर एक एक टोकरी सूरज भगवान को अर्पित की जाती है।
परिवार के प्रत्येक सदस्य दूध मिले हुए जल से उगते हुए सूर्य भगवान को अर्घ्य देता है। इसी समय सूरज देवता और छठ मैया से अपनी मनोकामना रखी जाती है।
गांव जाकर पीपल के नीचे हवन से पूजा पूर्ण
इसके बाद अपने गांव जाकर पीपल के पेड़ के नीचे जिसे ब्रह्म बाबा कहा जाता है ,उपले या कंडे पर हवन करके पूजा का समापन होता है। व्रती कच्चे दूध का शरबत पीकर व प्रसाद ग्रहण कर इस चार दिन की तपस्या को पूरा करते हैं।