कैसे देंगे हम भारत के खिलाफ
झूठे व गलत ग्लोबल नैरेटिव का जवाब ?
राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा और ग्लोबल नैरेटिव
राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के उत्साह और श्रद्धा के वातावरण में हम इतना डूब गए थे कि हमने इस पर बनाए जा रहे ग्लोबल नैरेटिव पर ध्यान ही नहीं दिया। 57 मुस्लिम देशों का रोना छोड़ दिया जाए तो भी वॉशिंगटन पोस्ट, न्यूयॉर्क टाइम्स, बी बी सी,अल जजीरा आदि लगभग सारे पश्चिमी मीडिया में एक तरह का राग अलापा।वे कहते रहे कि हिंदुओं ने मस्जिद तोड़कर मंदिर बनाया।
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ग्लोबल स्तर पर नैरेटिव बनाने का महत्व
ग्लोबल स्तर पर नैरेटिव बनाने का महत्व बहुत बढ़ गया है। अपने अपने हितों को साधने के लिए अपने अनुकूल ग्लोबल नैरेटिव बनाने के प्रयास में सारे बड़े देश जुटे रहते हैं।युद्ध के पहले और युद्ध के दौरान भी मीडिया वार लगातार होता रहता है।
ग्लोबल मीडिया अभी भी हमारे विरोध में
ग्लोबल लीडर्स भारत की प्रशंसा कर रहे हैं लेकिन अधिकांश ग्लोबल मीडिया अभी भी हमारे विरोध में है।अब केवल सोचने का समय नहीं है। अगर उन्हें गलत ग्लोबल नैरेटिव को बनने से रोकना होगा, तब भारत को अंतराष्ट्रीय स्तर पर अपना ढोल और ढिंढोरा पीटना पड़ेगा। हमें इंटरनेशनल नैरेटिव के लिए कार्य करना पड़ेगा।अगर हम इंटरनेशनल लेवल पर अपनी बात को मजबूती से नहीं रखने लायक बनेंगे तब हम कभी वास्तव में वर्ल्ड पावर नहीं बन पायेंगे।
इतने प्रमाण और न्यायालय के निर्णय के बावजूद…..
आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया ने मंदिर होने के सदियों पुराने 1360 पुरातात्विक साक्ष्य दिए थे।मंदिर होने के अनेक साक्ष्य उस समय के पाए गए तब तक इस्लाम का जन्म ही नहीं हुआ था।इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपने 10000 पृष्ठों के निर्णय में इन्हें और सैकड़ों साहित्यिक व अन्य प्रमाणों के आधार पर मंदिर होने के पक्ष में निर्णय दिया।फिर सुप्रीम कोर्ट में अपने 1045 पृष्ठ के निर्णय में पांच जजों की पीठ ने सर्वसम्मति से निर्णय दिया।
अब जरा कल्पना कीजिए कि यही समस्या किसी ऐसे देश में होती जिसमें 80% से भी अधिक जनता हिंदू न होकर किसी और धर्म की होती तो भी क्या उसे न्यायालय का सहारा लेना पड़ता और 75 साल इंतजार करना पड़ता।
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न्यायालय का निर्णय हिंदू व मुस्लिम दोनों को मान्य
दशकों तक कानूनी लड़ाई चली। दोनों पक्ष सुप्रीम कोर्ट के निर्णय से पहले से यह कह रहे थे कि न्यायालय जो भी निर्णय देंगे, वो हमें पूर्णतया स्वीकार होगा और निर्णय के बाद उन्होंने इसे स्वीकार भी किया।सदियों की इस लड़ाई के लिए दशकों तक न्यायालयों में संघर्ष चला। पूरा समय लगभग शांतिपूर्ण रहा। 80% हिंदुओं की सहनशीलता और न्यायप्रियता की तारीफ होनी चाहिए थी। मुस्लिम पक्ष ने जिस तरह इस निर्णय को माना,उसकी भी प्रशंसा होनी चाहिए।साथ ही यह भारत के जिंदा लोकतंत्र की विजय भी है।हमारे तमाम संस्थाओं ने निष्पक्षता और कुशलता से कार्य किया।
विदेशी मीडिया का हमला
मुस्लिम देशों के साथ ही साथ सारा विदेशी मीडिया राम की प्राण प्रतिष्ठा के दिन भारत के खिलाफ ग्लोबल नैरेटिव सेट करने की कोशिश में लगा रहा। वो ये क्यों कर रहे हैं।असल में यह मजबूत होते जा रहे है,भारत पर हमला है। ये विरोध स्पॉन्सर्ड है। अनेक फेक न्यूज पेडलर्स भारत विरोध में सक्रिय हो गए हैं। यह अयोध्या की आड़ में देश पर विदेशी मीडिया का हमला है।
सवाल यह है इस गलत ग्लोबल नैरेटिव सेट किए जाने को रोकने के लिए हम क्या कर रहे हैं।
मीडिया वार आम: इराक का उदाहरण
भारत की सेना की ताकत विश्व मान्य है।हम मिसाइल बना रहे हैं।जहाज और हथियार खरीद रहे हैं।लेकिन वो तो जब युद्ध होगा वो तब काम आयेंगे। मीडिया वार 24×7 चल रहा है। आजकल पूरे विश्व मीडिया के द्वारा युद्ध लड़ना आम हो गया है।कहते हैं इराक के खिलाफ अमेरिका ने पहले पूरा झूठा व गलत ग्लोबल नरेटिव सेट किया, फिर उस हमला कर आसानी से उसे जीत लिया और पूरे विश्व इसका न के बराबर विरोध हुआ था।
मीडिया बेहद कमजोर
हर बड़ा देश अपने हितों के लिए मीडिया का जमकर इस्तेमाल कर रहा है।लेकिन हम भले पांचवीं नंबर की इकोनॉमी हो गए हैं पर हमारी मीडिया की विश्व पटल पर कोई महत्त्व नहीं है।ये अपनी बात मजबूती से ग्लोबल स्तर तक पहुंचा तक नहीं पाते।हमारा एक भी चैनल ऐसा नहीं जिसकी वैश्विक पहचान हो।वैश्विक क्या,एशिया के स्तर तक में भी पहचान नहीं है।
सोशल मीडिया सोल्जर्स बधाई के पात्र
भारत जो थोड़ी बहुत लड़ाई लड़ रहा है वो सोशल मीडिया के जरिए लड़ रहा है।इसके लिए हमारे सोशल मीडिया सोल्जर्स बधाई के पात्र हैं।भारत के इन सोशल मीडिया सोल्जर्स की संख्या और आवाज दिनों दिन बढ़ती जा रही है।
कतर और अल जजीरा से सीखना होगा
हमें एक छोटे से देश कतर से सीखना होगा जिसके मीडिया चैनल अल जजीरा की पहचान वैश्विक स्तर पर हैं।उन्होंने अपने संसाधनों से उच्च तकनीक और अनेक विदेश एंकर्स को लेकर एक ऐसा प्रभावी चैनल बनाया है जिसकी धमक विश्व पटल पर सुनी जा रही है।फिर हम क्यों नहीं कर सकते ? तुर्की का टी आर टी वर्ल्ड भी तेजी से लोकप्रिय हो रहा है।
अंबानी, अडानी और टाटा
अंबानी और अडानी के बड़े बड़े मीडिया संस्थान हैं।इनको भी इन्हें ग्लोबल स्तर पर ले जाना चाहिए ताकि भारत की आवाज को विश्व स्तर पर गंभीरता से लिया जाए। टाटा समूह जो अपनी निष्पक्षता के लिए विश्व प्रसिद्ध है,उसे भी ग्लोबल मीडिया चैनल बनाना चाहिए। टाटा न हिंदू हैं और न ही मुस्लिम। उनका भारत प्रेम, निष्ठा, धर्म निरपेक्षता, समाज सेवा और कर्तव्य निष्ठा जग जाहिर है। जिस तरह वे एयर इंडिया की पुनः प्रतिष्ठापना के लिए प्रतिबद्ध है उसी प्रकार दृढ़ता, साहस और समर्पण के साथ देश पर हो रहे अन्यायपूर्ण विदेशी मीडिया के हमलों की विरुद्ध पहल करनी चाहिए। ऐसा करके वे भारत की अप्रतिम सेवा कर सकेंगे।
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भारत में वैश्विक स्तर का मीडिया : समय की मांग
अगर भारत को तेज बहुमुखी प्रगति करनी है तो उसको अपनी इस कमजोरी को स्वीकार कर इससे उबरने के लिए तेज प्रयास करने होंगे। तभी हमारी आवाज विश्व पटल पर सुनी जाएगी और भारत के खिलाफ झूठा, गलत व अन्यायपूर्ण ग्लोबल नैरेटिव सेट करने वालों को हम मुंहतोड़ जवाब देने में सक्षम हो सकेंगे।