अब होगा EVM पर रोना और EC को कोसना
बेचारी EVM बेजुबान है इसलिए भू लुंठित पार्टियों का कोपभाजन का शिकार बन जाती है। अपनी हार की असली कारणों पर पर्दा डालने के लिए EVM आसान शिकार बन जाती है। आज तक हार कर एक भी पार्टी ने कभी यह नहीं कहा कि हम अपनी नीतियों व गलतियों की वजह से हारे।
सबसे मजेदार उदाहरण दिल्ली का विधान सभा आप एक बार 67 सीट और बी जे पी लोक सभा में सभी सातों सीट। दूसरी बार आप 64 सीट और बी जे पी फिर सभी सातों सीट।ये EVM नहीं भारत का बुद्धिमान मतदाता है और
परिपक्व होते लोकतंत्र का प्रतीक है।
गजब का दोहरा मानदंड है जहां जीत जाओ वहां अपनी नीतियों और नेताओं के करिश्में के वजह से जीते और जहां हार
जाओ EVM की वजह से हारे। हारे हुए नेता कब तक बेचारी बेजुबान EVM पर हार का ठीकरा फोड़कर अपनी
जिम्मेदारी से बचते रहेंगे । कुछ तक इस कदर मूर्खतापूर्ण तर्क देंगे कि भाजपा जान बूझकर कर्नाटक हार गई ताकि लोकसभा में जब खेल करे, तब कोई कुछ कह न पाए।
ईवीएम के गड़बड़ होने में विपक्ष इस तर्क का भी सहारा लेता है आडवाणी ने इसका विरोध किया था और जी बी एल राव ने इसके विरोध में किताब लिखी थी।ये उस समय भाजपा की हार की कुंठा थी।इस बात को 15 साल से भी हो गए और
पचासों चुनावों में ईवीएम ने अपनी दक्षता और उपयोगिता प्रमाणित की है।यह तथ्य है बैलट पेपर से हुए चुनावों की तुलना में ईवीएम से हुए चुनावों में अधिकांश सत्ताधारी दल वापसी नहीं कर पाएं हैं। जब चुनाव आयोग ललकारता है आओ EVM को हैक करके दिखाओ तब ये लोग भाग लेते हैं।
1999 से ईवीएम से चुनाव शुरू हुए।जरा याद कीजिए मत पेटियों का ज़माना। दबंग मतपेटियां लेकर भाग जाते थे, ये कुएं में, तालाब में फेंक जाती थी, मतपेटियां उठा लाने के लिए गुंडों को ठेके दे दिए जाते थे।इस चक्कर में सैकड़ों
लोग मारे जाते थे।अनेक स्थानों पर रि पोल कराना पड़ता था।
अब रही चुनाव आयोग की बात। चुनाव आयोग की एक आलोचना यह हो रही है कि उसने वोटिंग परसेंटेज के आंकड़े कुछ दिन बाद बताए।अनेक दलों व मीडिया ने इसके बढ़ाए जाने की आशंका व्यक्त की जबकि यह किसी हालत में
संभव नहीं है। हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए चुनाव आयोग 97 करोड़ मतदाता वाला विश्व का सबसे बड़े चुनाव का संचालन कर रहा है। थोड़ी बहुत देर हो हो सकती है।
हमारा चुनाव आयोग बहुत प्रभावी है। अमेरिका जैसे देश में मतदाता पहचान पत्र नहीं है।मतदाता पहचान पत्र बनाए जाने
का डेमोक्रेट विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि यह व्यक्तिगत स्वतंत्रता का हनन करने वाला है जबकि रिपॉब्लिक इसके पक्ष में हैं। हमारी तरह पूरे देश का कोई एक चुनाव आयोग नहीं है। वहां चुनाव कराने हर स्टेट के अलग
अलग नियम है। एकरूपता का अभाव है।कहीं ईवीएम और कहीं बैलट पेपर से हो रहा है। अमेरिका की चुनाव प्रक्रिया लंबी है और काउंटिंग में भी बहुत वक्त लग जाता है। भारत की चुनाव प्रक्रिया और चुनाव आयोग अनेक देशों के लिए मार्ग प्रकाशक है।आगे विश्व के अनेक दे अद्भुत भारतीय चुनावों का अध्ययन करने भारत आयेंगे। चुनाव आयोग की आलोचना कुछ बातों में अवश्य की जानी चाहिए। इतना लंबा सात चरणों में चुनाव क्यों? चुनाव चार चरणों में और
सवा महीने में होना चाहिए।
चुनाव एक्सट्रीम क्लाइमेट में न हो। सैकड़ों लोग चुनाव कराने में फालतू में शहीद हो गए। अगर एक अप्रैल से 10 मई तक हो जाते तब हीट स्ट्रोक से कोई न मरता। चुनाव आयोग में 9000 करोड़ नकद काले धन को जब्त करके सराहनीय कार्य किया है पर गलत बयानी को रोकने में वह असफल रहा। इस ओर चुनाव आयोग को और प्रोएक्टिव होना पड़ेगा। चुनाव आयोग, चुनाव कर्मियों, राज्य कर्मियों, पुलिस व सैन्य कर्मियों के बहुत मेहनत से कार्य किया है। साथ ही देश के वे मतदाता साधुवाद के पात्र हैं जिन्होंने इतने भीषण गर्मी के मतदान में भाग लेकर इस महान देश के लोकतंत्र को और मजबूत बनाया है।