मिट्टी है तो जीवन है
आइए, विवेचना करते हैं, क्या है हमारी मिट्टी पर मंडराते खतरे और क्या है मिट्टी का मोल?
क्यों हो जाते हैं अपने देश मिट्टी की आन बान शान पर कुर्बान
मिट्टी से बने हैं हम सब, मिट्टी में ही समाना है, स्वाहा होकर या दफन होकर। अनंत काल से जारी है और अनंत काल तक जारी रहेगा यह सिलसिला। यह मिट्टी ही हमारा भरण पोषण करती है। शायद इसी कारण हम मिट्टी को ललाट पर लगाकर मां तुझे सलाम गाते रहे हैं और सदियों से इसकी आन बान शान पर कुर्बान होते रहे हैं। तभी तो कहते हैं कि मिट्टी है तो जीवन है।
परंपरा में है मिट्टी का मुक्त कंठ से गुणगान
हमारी परंपरा में भी है मिट्टी का मुक्त कंठ से गुणगान अथर्ववेद में कहा गया है कि माता भूमिः पुत्रो अहम पृथिव्या
अर्थात भूमि मेरी माता है और मैं उसका पुत्र हूँ।
यजुर्वेद में कहा गया है कि नमो मात्रे पृथिव्ये, नमो मात्रे पृथिव्याः
अर्थात माता पृथ्वी को नमस्कार। धरती माता हमारे जीवन के अस्तित्व का प्रमुख आधार है।
वाल्मीकि रामायण में कहा गया है जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी
जननी और जन्मभूमि का स्थान स्वर्ग से भी ऊपर है।
राष्ट्र की वास्तविक सम्पति क्या है?
कभी आपने सोचा है कि हमारे राष्ट्र की वास्तविक संपति क्या है? मिट्टी, जल, नदियां, समुद्र, पहाड़, खनिज, मौसम, वन आदि यही तो हैं। इनके बिना भारत का और हमारा अस्तित्व संभव है क्या? जरा सोचकर देखिए हिमालय न होता तो अनेक नदियां न होतीं तो क्या होता? भूमि व पर्वतों को खोदा जा रहा है, जंगलों को काटा जा रहा है, नदियों, नालों, तालाबों, बावड़ियों और कुओं को पाटा मिट्टी है तो जीवन है। जा रहा है। अरे मैं भटक गया, लौटकर मिट्टी पर आते हैं।
140 करोड़ का पोषण करने के साथ खाद्यान्न निर्यात भी
इसी मिट्टी के बल पर पर्याप्त पुरानी तकनीक और मानसूनी वर्षा पर निर्भरता के बावजूद भी हम न केवल एक अरब चालीस करोड़ भारतीयों का पेट भर पा रहे हैं बल्कि खाद्यान्न निर्यात भी कर रहे हैं।
नेमत को संजो कर रखना है
मिट्टी के बिना जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति कहां संभव है? हमारा उन्नत विज्ञान अभी मिट्टी नहीं बना सका है इसीलिए ऊपर वाले की इस नेमत को हमें हर हाल में संजो के रखना है। अचानक किसी शायर की पंक्तियां याद आ गईं – ओढ़कर मिट्टी की चादर बेनिशां हो जायेंगे। एक न एक दिन हम भी दास्तां हो जायेंगे।
धरती मां ऊर्जा का भंडार
हजारों सालों से हम भारत की उपजाऊ मिट्टी में केवल बीज छींट कर फसल काटते रहे हैं। 1960 तक कोई रासायनिक खाद नहीं डाली जाती थी। धरती मां ऊर्जा का भंडार थीं। वो जरा से श्रम से हमारी झोली भर दिया करतीं थीं। किंतु गलत सोच और न्यस्त क्षुद्र स्वार्थों से हमारी मिट्टी प्राणहीन होने लगी।
इफरात है जनाब ?
पर इसकी चिंता करता कोई क्यों नहीं दिख रहा है? यह जब हमने एक परिचित से पूछा, तो उनका उत्तर था, इफरात है जनाब, ये कभी खत्म नहीं होने वाली। चूंकि मिट्टी हमारे चारों ओर प्रचुर मात्रा में बिखरी हुई है, अतैव इसकी कोई चिंता नहीं करता। इसकी गुणवत्ता में जो कमी आ रही है,वो नजर नहीं आती।
मिट्टी का अपना जीवन है
मिट्टी का अपना जीवन है। उसमें असंख्य जीवाणुओं का निवास है। जल ग्रहण करने और वायु संचार की व्यवस्था है। मिट्टी अनेक तरह के पोषक तत्त्वों की प्रदाता है। जब यह व्यवस्था टूटती है तो भूमि की उर्वरता नष्ट होती है। बाहर से तो यह वही मिट्टी नजर आती है , पर उसकी जीवनदायिनी क्षमता बहुत कम हो जाती है।
मिट्टी को फैक्ट्री में तैयार करना संभव नहीं
एक मोटे अनुमान के अनुसार अनुकूल परिस्थितियों में एक इंच मिट्टी के तैयार होने में लगभग 800 साल लगते हैं और नष्ट होने में चंद पल। इसे प्रयोगशाला या फैक्ट्री में नहीं तैयार किया जा सकता। इसीलिए मिट्टी अमूल्य है, इसका कोई विकल्प नहीं है। फिर भी हम इसके सरंक्षण व रखरखाव में इतने लापरवाह क्यों हैं?
आसन्न संकट की पदचाप
अगर इसी तरह मिट्टी का क्षरण जारी रहा तो विश्व के अरबों लोगों की आजीविका और खाद्य उपलब्धता गंभीर रूप से प्रभावित होगी। यदि मिट्टी की शक्ति में कमी आ गई तो फल व खाद्यान्न के पोषक तत्वों में कमी आ जायेगी। इस कारण कुपोषण बढ़ेगा और हमारी पीढ़ियां कमजोर होती जायेंगी। यदि मिट्टी का क्षरण न रोका गया,तो यह उत्तरोत्तर अनुपजाऊ होती जायेगी। लैंड होल्डिंग छोटे होते चले जाने और कम लाभ होने से किसान खेती से विमुख होने लगे हैं। खेत बंजर होते जाने से वो खेती छोड़ देंगे। उक्त वजहों से आसन्न खाद्यान्न संकट की पदचाप सुनी जा सकती है।
ऊपरी सतह में ही उपजाऊ बनाने वाले सूक्ष्मजीवी
मिट्टी की ऊपरी सतह (10 इंच में) में ही अधिकांश सूक्ष्मजीवी तत्त्व रहते हैं जो मिट्टी को उपजाऊ बनाए रखते हैं। अनेक कारणों से इन जीवों की संख्या में निरंतर कमी होती जा रही है। यदि ये समाप्त हो गए तो मिट्टी के बंजर हो जाने से उस पर कोई फसल नहीं उग पायेगी।
मिट्टी नष्ट तब जीवन पर ही खतरा
हम मिट्टी का गला घोंट रहे हैं यानि उसे धीरे धीरे निर्जीव बना रहे हैं। मिट्टी का क्षय तो कृषि का क्षय, फिर करोड़ों के आजीविका व खाद्यान्न उपलब्धता का भय और फिर जीवन पर ही खतरा मंडराने लगेगा। फिर हुजूर उपाय क्या है?
फिर हुजूर उपाय क्या है?
हमें अपनी मिट्टी को सशक्त बनाना होगा। अनुचित व एन – केन – प्रकारेण तत्काल कसकर लाभ लेने की प्रवृत्ति छोड़नी होगी। हमें अपनी मिट्टी को पुनः पोषक तत्वों से भरपूर बनाना होगा। जब हमारी भूमि ऊर्जावान बनेगी तभी बात बनेगी।
जन जन की टेर
कई बार हम यह समझते हैं कि मिट्टी, पर्यावरण, जल, जलवायु आदि के मुद्दे केवल चंद संभ्रांत, पढ़े – लिखे, अमीर एवं एन जी ओ वालों का ही है। इसे जन जन की टेर बनाना ही होगा, तभी मिट्टी बचेगी।
भारतीयों की दो बीमारियां
हम भारतीयों में दो बीमारियां दिखाई दे रही हैं एक तो समस्या को सोशल मीडिया पर शेयर कर अपने कर्तव्य की इति श्री मान लेने की और दूसरी सब कुछ सरकार पर डालकर उसे कोस – गरिया कर राहत अनुभव कर स्वयं अपने कर्तव्य से भागने की। अरे भाई , यह मुद्दा हम सबका है, इसकी परवाह हम और आप नहीं करेंगे तो करेगा कौन?
बायो ऑर्गेनिक नेचुरल वस्तुओं का प्रयोग
अब आप पूछेंगे कि कहां से शुरू करना होगा। आइए सबसे पहले हम ये संकल्प लें कि हम सदैव बायो, ऑर्गेनिक और नेचुरल वस्तुओं का प्रयोग हर संभव अधिक से अधिक जीवन भर करेंगे।
जब इनकी डिमांड बढ़ेगी तभी तो किसान और अधिक जैविक खेती की ओर प्रवृत्त होगा और तब जाकर रसायनों का प्रयोग कम होता जायेगा और जमीन सुधरना प्रारंभ हो जायेगी। हो सकता है कि जैविक उत्पाद प्रारंभ में थोड़े महंगे हों पर ये आपके व आपके बच्चों के स्वास्थ्य के लिए लाभकारी और पर्यावरण अनुकूल होंगे। फिर इससे जमीन सुधरेगी। पहले जैविक उत्पादों का उत्पादन कम होगा, फिर धीरे धीरे ये बढ़ता जायेगा।