क्यों अनूठा है छठ महापर्व ?
वैदिक काल से लोकप्रिय
* छठ महापर्व वैदिक काल से ही चला रहा है। इसमें वैदिक आर्य संस्कृति की स्पष्ट व निराली झलक दिखती है। ऋग्वेद में भी सूर्य, उषा, प्रकृति आदि के पूजन खूब उल्लेख मिलता है।
लोकपर्व से संस्कृति की रक्षा
* छठ महापर्व जैसी लोक परंपराओं व आस्थाओं ने ही शताब्दियों से हिंदू धर्म को तमाम सांस्कृतिक हमलों और शासक सत्ता के अत्याचारों से बचा कर रखा है और ताकत प्रदान की ।
पुरुष का भी बराबर सहयोग
* अनेक बार लगता है कि स्त्रियों ने ही त्यौहारों व व्रतों का ठेका ले रखा है। लेकिन छठ पर्व में जब सूट-बूट पहनने वाले पूत भतार धोती लपेटकर, नंगे गोड़, मूड़ पर प्रसाद का भारी दऊरा लेकर आगे-आगे चलते हैं और कमर तक पानी में खड़े रहते हैं, तब सही मायने में यह अहसास होता है कि पुरुष शोषक नहीं बल्कि जीवन यात्रा के सहचर हैं। छठ पूजा में स्त्री आस्था व सामर्थ्य के बल पर व्रत ठानती है और पुरुष उसके व्रत में पूरी निष्ठा से जमकर सहयोग करते हैं।
सारे भेदभाव समाप्त कर सामाजिक समानता
* जब समाज के सारे लोग जाति, वर्ग का भेदभाव भुलाकर सिर पर प्रसाद से भरा दऊरा पर रखकर निकलते हैं तो लगता है कि छठ मैया ने सामाजिक समानता ला दी है। कोई ऊँच-नीच, बड़ा-छोटा, अमीर-गरीब नहीं रह जाता है। सारे कृत्रिम एवं मानव निर्मित सामाजिक भेदभाव नदी के पानी में ही बह जाते हैं। सारे लोग एक ही भाव से भरकर उत्साह व उल्लास पूर्वक छठ पर्व मनाते हैं ।
समाज की सामूहिक भावना का प्रकटीकरण
* व्यक्तिगत पूजा पर जोर न होकर पारिवारिक और सामाजिक पूजा पर जोर है। समाज के सामूहिक भावना का प्रकटीकरण है यह त्यौहार।
अहम का विलयन
* स्त्री पुरुष समानता और सामाजिक समानता स्थापित करने के साथ ही यह व्यक्ति के अहम को भी नियंत्रित करने में भी बहुत कारगर है। जब परिवार का मुखिया सिर पर दौरा लेकर घाट तक जाता है। तब उसका अहम भाव तिरोहित हो जाता है।
छठ महापर्व मूर्त पूजा, मूर्ति पूजा नहीं
* सूर्य के रूप में ईश्वर को मूर्त रूप से पूजने वाला है यह त्यौहार । कहीं भी मूर्ति पूजा नहीं की जाती।
उगते व डूबते सूरज की आराधना
* अनेक विदेशी संस्कृतियों में उगते सूरज को ही नमन किया गया है, जबकि छठ एक ऐसा त्यौहार है कि हम उगते सूरज का तो नमन करते ही हैं। अस्ताचलगामी यानी डूबते सूरज की भी आराधना करते हैं।
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बिचौलिए का रोल खत्म
* छठ पूजा में किसी बिचौलिए का कोई रोल नहीं होता । इसमें किसी पंडित-पुजारी की आवश्यकता नहीं पड़ती। भगवान से सीधे जुड़ने वाला यह अनूठा त्योहार है ।
स्वच्छता व आहार के प्रति जागरूकता
* नहाय खाय हमें शारीरिक स्वच्छता व आहार के प्रति जागरूक करता है । हिंदू धर्म में जल को पवित्रता से जोड़ा गया है। केले के पत्ते पर धरा सामान्य सा भोजन और लोटे में पानी, हमें जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं के बारे में बताते हैं।
परंपरा की पहचान
* इस त्यौहार में लाखों लोग शहरों से अपने गांवों में आकर अपनी जड़ों को एक बार फिर देखते, पहचानते और अनुभव करते हैं। युवा पीढ़ी को अपने परिवेश व परम्परा को देखने समझने और अपनाने का अवसर देता है ।
इको फ्रेंडली
* एनवायरमेंट फ्रेंडली है छठ। पूरे घर की नहीं बल्कि घाट तक की साफ-सफाई पर बहुत बल देता है। नदी सरोवर व उसके आसपास के स्थानों पर मिलजुल कर उत्साह के साथ सफाई की जाती है।
भोग से वैराग्य
* इको फ्रेंडली है यह त्यौहार। मिट्टी के बर्तनों में पकाने और बांस के सूपों व डलियों दऊरों का प्रयोग इस त्यौहार को इको फ्रेंडली बनाता है।
अनयूज़्ड ऊर्जा को अनलॉक करने की कुंजी
* यह पर्व कम प्रयोग किए जा रहे फलों और सब्जियों पर जोर देता है। तरह तरह के फलों का जखीरा सांसारिक पौष्टिकता का समर्पण ही नहीं, भोग से वैराग्य को भी दर्शाता है।
परंपरागत पकवान को बढ़ावा
* नहाए खाए और खरना के बाद 36 घंटों का कठिन निर्जला व्रत रखा जाता है। यह अनयूज़्ड ऊर्जा को अनलॉक करने की सहज कुंजी है। जिस किसी व्रती को कमजोरी लगे, चक्कर आए, उसके स्वास्थ्य व सामर्थ्य की सघन जांच हो जाती है। उसे नियमित पौष्टिक खानपान, ध्यान, व्यायाम की गुणवत्ता बढ़ाने की आवश्यकता है।
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लोकगीतों को बढ़ावा
* आजकल फास्ट फूड के समय में हमारी नई पीढ़ी तेजी से हमारे पारंपरिक पकवानों को भूलती जा रही है। इस त्यौहार में घर में ही गीत गाते हुए परंपरागत पकवान बनाये, खाए और वितरित किए जाते हैं। कच्चे चूल्हे पर गन्ने के रस में पकायी गयी खीर खिरनी, गुड़ व आटे से बना ठेकुआ आदि छठ से जुड़े विशिष्ट पकवान हैं ।
रोजगार सृजन
* छठ महापर्व ने भजनों व लोकगीतों को बहुत बढ़ावा दिया है।
मोनोटोनी तोड़कर नूतन संकल्पों से भर देने वाला त्यौहार
* छठ पर्व से इकोनॉमी को भी एक उछाल मिलता है। लाखों लोगों को रोजगार मिलता है। महीनों पहले से इसकी तैयारियां प्रारंभ हो जाती है। छठ महापर्व में लगने वाली सामग्री से अनेक गरीबों, कारीगरों व उद्यमियों को बहुत बढ़ावा मिलता है, जैसे मिट्टी के बर्तन बनाने वाले, बांस से संबन्धित सामग्री बनाने वाले आदि।
रिफ्रेशर कोर्स
नए कपड़ों को पहन कर अपनी गलतियों की माफी मांग कर फिर एक बार नूतन संकल्पों, आशाओं व मनोकामनाओं से भर देने वाला त्यौहार है। यह जीवन की मोनोटोनी को तोड़कर, दोहराव को रोककर एक नए उत्साह व उमंग से भर देता है। यही इस छठ उत्सव का उत्स है।
यह वार्षिक अनुष्ठान अपने मूल को जानने व पहचानने के रिफ्रेशर कोर्स की तरह है। ज्ञान को मलिन नहीं होने देता। जिन पुरखों ने इसे सहेजा है, वे वाकई में वंदनीय है। छठ महापर्व के विधि-विधानों व कर्मकांडों के रैपर में हमारी अनूठी व अनमोल ज्ञान संपदा संरक्षित है।
व्रतियों को साधुवाद
* अंत में सभी व्रती साधुवाद के पात्र हैं क्योंकि उनमें से अधिकांश हमारी अनूठी, अनमोल ज्ञान संपदा व धरोहर से अनजान होकर भी व्रत, पूजा और तपस्या को निभाते हुए उसे जीवंत किए हुए हैं।