तुलसी के लाभ व धार्मिक महत्त्व
तुलसी पौधा मात्र न होकर, हिंदू घरों का अहम हिस्सा
सनातन धर्म में तुलसी पूजन को बहुत शुभ और घर में सुख समृद्धि लाने वाला माना जाता है। भारत के अधिकांश घरों में तुलसी के पौधे की पूजा की जाती है। जब भी घरों में कुछ विशेष कार्य होता है तो तुलसी का पूजन जरूर होता है। हमारे ऋषियों मुनियों को हजारों वर्षों से तुलसी के गुणों का पूरा ज्ञान था। इसीलिए उन्होंने इस पौधे को दैनिक जीवन में प्रयोग हेतु प्रमुखता से स्थान दिया है।
भारतीय समाज में तुलसी के पौधे का धार्मिक महत्व बहुत अधिक है। तुलसी को हिंदू धर्म में सबसे पवित्र पौधों में से एक माना जाता है। तुलसी का औषधीय महत्व भी कम नहीं है। तुलसी सुगंधित तेल का एक उत्तम स्रोत है। सौंदर्य प्रसाधन व खाद्य पदार्थों में इसका बहुत प्रयोग किया जाता है। शरीर, बुद्धि और आत्मा को पावन करने के लिए तुलसी की जड़ों से बनी 108 गुरियों की माला का प्रयोग किया जाता है।
क्या है तुलसी का धार्मिक महत्व?
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार देव और दानव द्वारा किए गए समुद्र मंथन के समय जो अमृत धरती पर छलका, उसी से तुलसी की उत्पत्ति हुई। ब्रह्मदेव ने उसे भगवान विष्णु को सौंपा। भगवान विष्णु के पूजन के समय तुलसी पत्रों का हार उनकी प्रतिभाओं को अर्पण किया जाता है। कृष्ण या विष्णु तुलसी पत्र के बिना नैवेद्य स्वीकार नहीं करते। हनुमान को भी तुलसी दल का भोग लगाया जाता है।
हिंदुओं में ऐसी मान्यता है कि जिस घर में रोजाना तुलसी की पूजा होती है। देवी लक्ष्मी उस घर को छोड़कर नहीं जाती है अर्थात सुख समृद्धि बनी रहती है। तुलसी को देवी लक्ष्मी का पर्याय माना गया है और इसीलिए घर के आंगन में इसे रखने की परंपरा रही है। यह नकारात्मक ऊर्जा को नष्ट कर सकारात्मक ऊर्जा का संचार करती हैं। प्राण त्याग के समय मनुष्य के मुंह में तुलसी पत्र रखने की परंपरा है।
तुलसी जी भगवान विष्णु (शालिग्राम) से संबंधित है। तुलसी से भगवान विष्णु के विवाह की परंपरा है। तुलसी विवाह से शुभ तिथियों का आरंभ होता है। शरीर, बुद्धि व आत्मा को पावन करने के लिए तुलसी के जड़ों से बनी माला का प्रयोग होता है।
क्या होता है अंतर रामा एवं श्यामा तुलसी में ?
रामा तुलसी हरी व बड़ी पत्ते वाली होती है। श्यामा या कृष्णा तुलसी गाढ़ी हरी पत्तियों वाली होती हैं। श्यामा तुलसी विष्णु पूजा में प्रयुक्त की जाती हैं।
क्या है तुलसी का औषधि महत्व ?
संस्कृत में तुलसी का मतलब है अतुलनीय। चरक संहिता और सुश्रुत संहिता में तुलसी के गुणों के बारे में विस्तार से वर्णन है। तुलसी की पत्तियों को आप सीधे पौधे से तोड़कर खा सकते हैं। रामा तुलसी की तुलना में श्यामा तुलसी या काली तुलसी में अधिक औषधीय गुण होते हैं।
तुलसी में बहुत से औषधीय गुण होते हैं। इसके पत्ते और टहनी विभिन्न प्रकार की बीमारियों में औषधियों के रूप में काम आते हैं। तनाव, अल्सर, उच्च रक्तचाप, टयूमर, पेट के विकार आदि में भी इसका उपयोग किया जाता है। बच्चों के पेचिश और खांसी के इलाज में यह बहुत उपयोगी है।
तुलसी की पत्तियां पेट के लिए अमृत समान हैं। पेट की कई समस्याएं जैसे पेट में कब्ज, जलन, अपच, एसिडिटी, खट्टी डकार को यह चुटकियों में दूर कर सकती है। पी एच लेवल मेंटेन करने में भी इसकी पत्तियां काम आती हैं।
वजन कम करने में सहायक है। तनाव कम करती है। रोग प्रतिरोधक क्षमता कम रखकर निरोगी बनाए रखती है। रोजाना सुबह तुलसी के पत्तियों के सेवन से सर्दी खांसी की समस्याएं नहीं होती। गले की चुभन, खराश टॉन्सिल्स आदि समस्याओं से छुटकारा मिलता है।
स्वास्थ्य के साथ त्वचा के लिए भी बहुत फायदेमंद है। यह एजिंग से बचाती है। सुबह सुबह रोज चबाने से स्किन ग्लो करने लगती है। एंटीआक्सिडेंट गुणों के कारण त्वचा रोगों में लाभकारी है। इसके एंटी बैक्टिरियल, एंटी वायरल और एंटी फंगल गुण स्किन की गहराई तक जाकर सफाई करते हैं। इससे पिंपल्स,एक्ने भी खत्म हो जाते हैं।
तुलसी की पत्तियां हेयर फॉलिकल्स को फिर से सक्रिय कर बालों को झड़ने से बचा सकती हैं। साथ ही बालों की जड़ों को मजबूत बनाती हैं। बालों को गिरने और असमय सफेद होने से बचाती है। ब्लड सर्कुलेशन बढ़ाती है जिससे पूरी त्वचा और बालों को लाभ मिलता है।
फूड, कॉस्मेटिक्स और फार्मास्यूटिकल उद्योग में भी तुलसी का उपयोग किया जाता है। इसका तेल मूल्यवान होता है।
पोषक तत्त्वों से भरपूर है तुलसी
तुलसी विटामिन और खनिज का भंडार है। इसमें मुख्य रूप से विटामिन सी, कैल्शियम, जिंक, आयरन और क्लोरोफिल पाया जाता है। इसके अलावा तुलसी में साइट्रिक टारटरिक एवं मैलिक एसिड पाया जाता है जो विभिन्न रोगों के रोकथाम के लिए उपयोगी है।
तुलसी (ओसिमम सेक्टम या बासिल) का पौधा एक द्विबीजपत्री तथा शाकीय औषधि झाड़ी नुमा पौधा होता है और पूरे वर्ष चलता है। यह 30 से 60 सेंटीमीटर का होता है और शाखा काष्ठीय होती हैं। तुलसी देश के समस्त भागों में पाई जाती है। इसकी पत्तियां अंडाकार दोनों सिरों पर रोमिल, किनारों पर चिकनी होती हैं। इसके फूल गुच्छों में लगते हैं। तुलसी का संपूर्ण पौधा ही उपयोगी होता है।
नए पौधे मुख्य रूप से वर्षा ऋतु में उगते हैं और शीतकाल में फूलते हैं। तुलसी का पौधा समान रूप से दो-तीन वर्षों तक हरा बना रहता है। इसके बाद इसकी वृद्धावस्था आ जाती है। पत्ते कम और छोटे हो जाते हैं और शाखाएं सूखी दिखाई देने लगती हैं।इस तरह उसे हटाकर नया पौधा लगाने की आवश्यकता प्रतीत होती है।
क्यों प्राण त्याग करते समय मुहमें रखते हैं तुलसी?
औषधीय पौधा तुलसी का मानव स्वास्थ्य हेतु अनेक लाभ है और अब यह वैज्ञानिक दृष्टि से पूरी तरह प्रमाणित है। हमारे पूर्वजों ने हजारों साल पहले यह समझ लिया था और इसीलिए उन्होंने इसे आंगन में लगाने को कहा था। इसका महत्व पूरी तरह आम जनता समझ जाये इसीलिये उन्होंने मरते हुए मनुष्य के मुख में तुलसी रखने की परंपरा डाली।
मृत्यु के समय तुलसी के पत्तों का महत्व मृत्यु के समय व्यक्ति के गले में कफ जमा हो जाने के कारण श्वसन क्रिया एवं बोलने में रूकावट आ जाती है। तुलसी के पत्तों के रस में कफ फाड़ने का विशेष गुण होता है, इसलिए शैय्या पर लेटे व्यक्ति को यदि तुलसी के पत्तों का एक चम्मच रस पिला दिया जाए या मुख में पत्तियां डाल दी जाए, तो व्यक्ति के मुख से आवाज निकल सकती है और मरते समय वह जो कहना चाहता है,कह सकता है।
कैसे करें तुलसी का सेवन ?
तुलसी खाने के फायदे उठाने के लिए हम रोज सुबह खाली पेट तुलसी की पत्तियों को चबाया जा सकता है। उससे पहले इसे पानी से जरूर धो लें।
तुलसी के पत्तों के साथ अदरक और शहद का इस्तेमाल करके हर्बल चाय बनाई जा सकती है। यह चाय न सिर्फ सेहत के लिए फायदेमंद है, बल्कि स्वाद में भी अच्छी होती है।
आप अपनी पसंदीदा डिश जैसे टमाटर की चटनी, फ्लेवर दही में तुलसी के पत्तों को काटकर डाल सकते हैं। इससे डिश का स्वाद भी बढ़ेगा और जरूरी पोषक तत्व मिलेंगे।
खाना बनाते समय अंत में तुलसी के पत्तों को मिक्स कर देने से इसे खाने में अनोखा स्वाद आएगा। साथ ही खाने में मनमोहन खुशबू हो जाएगी।
जूस या मॉकटेल में तुलसी के पत्तों को डाल सकते हैं। इससे नया फ्लेवर मिलेगा।
सलाद में भी तुलसी के ताजे पत्ते को काटकर मिक्स कर सकते हैं।
क्यों कराया जाता है तुलसी विवाह ?
शीत ऋतु शुरू होने के पहले तुलसी विवाह कराया जाता है। नई पीढ़ी इसका मज़ाक उड़ाती है और मानती नहीं है। मेरी समझ में तुलसी विवाह के पीछे उसे आने वाली शीत ऋतु से बचाने का प्रयोजन निहित है। जाड़े के मौसम में बाहर रहने वाली तुलसी का पौधा प्रभावित होता है और मर भी जाता है। इसीलिये हमारे पूर्वजों ने इसे बचाने के लिए इसका विवाह का आयोजन कर चुनरी डालने की परम्परा डाली होगी। उस समय की अधिकांश जनता अनपढ़ थी इसीलिये उन्होंने इसे धर्म से जोड़ दिया ताकि सभी लोग इसका पालन करने लगे और तुलसी के चमत्कारिक गुणों का लाभ उन्हें उपलब्ध हो सके।
ज्ञान के प्रसार के लिये तब मास कम्युनिकेशन के साधन नहीं थे। सामान्य जन के लिए विद्यालय भी नहीं थे। इसलिए हमारे पूर्वज जब कोई समाजोपयोगी बात आम जन तक पहुंचाना चाहते थे तो उसे धर्म से जोड़ देते थे।