भारत के ग्रेटेस्ट जनरलों में एक लचित बोरफुकन
लचित बोरफुकान गोल्ड मेडल क्या है?
नेशनल डिफेंस अकादमी यानी एन. डी. ए. अपने सर्वोच्च सैनिक अर्थात बेस्ट पासिंग आउट कैडेट को लाचित बोरफुकन गोल्ड मेडल देकर सम्मानित करती है जिससे हमारी सेना को उनकी तरह वीरता दिखाने की प्रेरणा मिलती रहे।
पीड़ा की बात कि आखिर क्यों है देश लचित बोरफुकन से अंजान
ये बड़े दुख व पीड़ा की बात है कि अधिकांश देशवासी भारत के ग्रेटेस्ट आर्मी जनरलों में एक लाचित के विलक्षण शौर्य और युद्ध कौशल से अनभिज्ञ है। क्या आपने लाचित बोरफुकन और सराय घाट युद्ध के बारे में सुना है ? कैसे मुठ्ठी भर सैनिकों को लेकर अपने बेहतरीन युद्ध कौशल से लाचित के शानदार नेतृत्व में मुगल सम्राट औरंगजेब की बहुत बड़ी सेना को नॉर्थ ईस्ट से खदेड़ दिया गया था ? आज वो पूरे नॉर्थ ईस्ट में सर्वोच्च नायक के रूप में अमर हैं और प्रत्येक 24 नवंबर को आसाम में लाचित दिवस मनाकर उन्हें याद किया जाता है। आइए जान लेते हैं कौन थे लाचित बोरफुकन और बैटल ऑफ़ सराय घाट।
अहोम वंश व आसाम
इसके पहले अहोम के बारे में जान लेते हैं, अहोम लोगों ने 13वीं शताब्दी में म्यांमार से भारत आकर 16१२ में ब्रह्मपुत्र वैली में अहोम राज्य की स्थापना की। शीघ्र ही अहोम शासकों ने स्थानीय हिंदू परंपराओं और रीति रिवाजों को अपनाकर आम जनता से घुल मिलकर एक सशक्त राज्य और जाबांज सेना खड़ी कर ली। आसाम नाम भी अहोम वंश के नाम पर है।
अहोम सेना ने किया मुगल मंसूबों को ध्वस्त
इस सेना ने अपनी वीरता से मुगलों के 17 आक्रमणों का मुंहतोड़ जवाब देकर आसाम में मुगल साम्राज्य विस्तार के मंसूबों को ध्वस्त कर दिया। असम अकेला ऐसा राज्य है जिसे मुगल भरपूर कोशिशों के बावजूद कभी जीतकर साम्राज्य में नहीं मिला पाए।
आसाम का अपमान
आइए लाचित के पूर्व के आसाम की स्थिति जान लें। 1663 में मुगलों ने अहोम सेना को परास्त कर घिलाझारी घाट की बेहद अपमानजनक संधि की जिसके अनुसार अहोम को भारी मात्रा में सोना, हाथी देने के साथ राजा जयध्वज सिंह को अपनी इकलौती बेटी और भतीजी तक को मुगल हरम में देना पड़ा। सोना और हाथी हर साल देने का प्रावधान था। सारी अहोम की जनता इस अपमान से तिलमिला उठी। सदमें से राजा चल बसा । कहते हैं उसने होने वाले राजा और अपने भाई चक्र ध्वज सिंह से इस अपमान के भाले को अहोम की छाती से निकालने का वायदा लिया।
शासक चक्रध्वज ने सेनापति बनाया लचित बोरफुकन को
नए अहोम शासक चक्र ध्वज सिंह ने अगले 2 साल जमकर तैयारी की । सेना विशेषतया नेवी को संगठित और मजबूत किया गया। पड़ोसी राजाओं से मित्रता की गई। युद्ध काल के लिए अनाज की भरपूर व्यवस्था की गई । योग्यता और वीरता के कारण अनेक छोटे पदों से तरक्की करते हुए अहोम शासक चक्र ध्वज के समय सेनापति पद पर पहुंचे थे।
गुवाहाटी विजय
अब अहोम ने मुगल किस्त को देना बंद कर आस पास के इलाकों को जीतते हुए गोहाटी की ओर बढ़ना शुरू कर दिया। 1667 में अलाबोई की प्रसिद्ध लड़ाई में लाचित बोरफुकन के नेतृत्व में अहोम सेना ने मुगल सेना को हराकर गुवाहाटी छीन लिया। इस लड़ाई में 10000 अहोम वीरों ने अपनी मातृभूमि से आक्रांताओं को खदेड़ने में बलिदान दिया था।
मुगलों की भारी तैयारी
इस करारी हार से लगभग सारा भारत जीत चुका औरंगजेब तिलमिला उठा उसने 1671 में आमेर के राजा मिर्जा जय सिंह के पुत्र राम सिंह के नेतृत्व 80000 सैनिकों की एक बड़ी सेना भेजी। इस सेना में 1000 तोपें थी।
गोरिल्ला युद्ध की तैयारी
इतनी बड़ी मुगल सेना के आगे अहोम की छोटी सेना टिक नहीं सकती थी। इसीलिए चीफ कमांडर लचित बोरफुकान ने Daga Juddha या गोरिल्ला युद्ध की स्ट्रेटजी बनाई ।
आत्मसमर्पण का प्रस्ताव ठुकराया
राम सिंह ने अहोम राजा चक्रध्वज के पास आत्म समर्पण का संदेश भेजा जिसको उन्होंने “आखिरी जीवित अहोमी भी मुगल सेना से लड़ेगा” कहकर ठुकरा दिया।
मेरे चाचा भी देश से बढ़कर नहीं
लाचित में मुगलों को रोकने के लिए अनेक रास्ते बंद करा दिए। उन्होंने अपने चाचा को कुछ रास्ते बंद करवाने और दीवार उठाने का जिम्मा सौंपा था जिसे उन्होंने ठीक से नहीं निभाया। इस पर लाचित ने सार्वजनिक स्थान पर उनकी गर्दन को धड़ से अलग करते हुए कहा “मेरे चाचा भी मेरे देश से बढ़कर नहीं है।“ लाचित के इस कार्य से सारी सेना को सख्त संदेश गया और सेना जी जान से अपने कार्यों में जुट गई।
ब्रह्मपुत्र का जलमार्ग लेने को बाध्य
लाचित ने गुवाहाटी को बचाने का निर्णय लिया ।यह एक पहाड़ी क्षेत्र था और पहाड़ों के बीच के रास्ते संकरे थे । पहाड़ों पर चढ़कर अहोम सैनिक छिपकर संकरे रास्तों से गुवाहाटी की तरफ बढ़ रही मुगल सेना पर तेजी से हमला कर गायब हो जाते थे । स्ट्रेटजी यह थी कि मुगलों को संकरे रास्तों पर इतना परेशान कर दिया जाए कि वह ब्रह्मपुत्र का जलमार्ग लेने को बाध्य हो जाए। उन्हें पता था कि मुगलों की नेवी बहुत कमजोर है और उसे पानी में युद्ध का अधिक अनुभव भी नहीं है।
नेगोशिएशंस से उलझाए रखा
सराय घाट में ब्रह्मपुत्र नदी बहुत संकरी हो जाती है । मुगल सेना को रोकने के लिए यह एक आदर्श जगह थी। लाचित बोरफुकान ने राम सिंह को यह संदेश भिजवाया कि वह बहुत डरे हुए हैं और मुगलों से संधि करना चाहते हैं । उन्होंने मुगलों को नेगोशिएशंस में उलझाए रखा ताकि उनकी तैयारी और बेहतर हो सके।
मुगल की भारी नेवी
औरंगजेब ने मुन्नवर खान और शाइस्ता खान के नेतृत्व में एक बहुत बड़ी नेवी भी भेज दी। साथ ही राम सिंह को संदेश भिजवाया कि आपको लड़ने भेजा गया है नेगोशिएशन करने नहीं।
लचित बोरफुकन का जवाब
जब तैयारियां पूरी हो गई तो लाचित ने राम सिंह के पास संदेश भेजा कि आप तो एक नौकर हैं संधि के लिए अपने बादशाह को भेजिए। रामसिंह ने गुस्से में आकर गुवाहाटी की ओर मार्च कर दिया। संकरे रास्ते पर जा रही मुगल सेना पर पहाड़ों पर छिपकर बैठे अहोम सैनिक हमला कर भाग जाते थे। मुगल सैनिकों के लगातार मारे जाने और कुछ न कर पाने से सेना फ्रस्ट्रेट हो गई।
जलमार्ग में मुगलों को भारी नुकसान
अंत में परेशान होकर मुगल कमांडर राम सिंह ने मुगल सेना को ब्रह्मपुत्र के जल मार्ग से गुवाहाटी में प्रवेश करने का आदेश दिया। लाचित यही चाहते थे । सराय घाट जहां ब्रह्मपुत्र संकरी हो जाती है वहां तीन ओर की पहाड़ियों ईटा खुली, कामाख्या और अश्वक्रांत पर पहले से तैयारी के साथ बैठे सैनिकों ने एक साथ हमला बोल दिया । मुगल सेना अधिक देर मुकाबला नहीं कर सकी। मुगल सेना के तीन एडमिरल और 4000 सैनिक मारे गए। बचे हुए मुगलों को मानस नदी तक खदेड़ दिया गया। लाचित के शौर्य और उनकी तलवार हेंग डांग की कीर्ति फैल गई।
सरायघाट युद्ध में लाचित का विश्व प्रसिद्ध युद्ध कौशल
इस तरह सरायघाट युद्ध में लाचित बोरफुकान के नेतृत्व में अहोम सेना की शानदार जीत हुई। यह युद्ध मुगलों की भारी शक्ति और लाचित की बुद्धि के बीच था। इसलिए वे मुख्य रास्तों को बंद कर लड़ाई को पहाड़ों के संकरे रास्तों व नदियों की ओर ले गए । जिसमें मुगल कमजोर थे और अहोम निपुण। किस तरह एक बहुत छोटी सेना से लाचित ने लाजवाब युद्ध कौशल से कई गुने संसाधनों वाली सेना को धूल चटा दी। विश्व में इने गिने युद्ध ही हैं जहां कि इतनी छोटी सेना के कमांडर ने अपनी वीरता और युद्ध कौशल से इतने बड़े व शक्तिशाली साम्राज्य की विशाल सेना को खदेड़ दिया हो।
मुगलों के साम्राज्यवादी मंसूबे ध्वस्त
इस युद्ध ने सदा के लिए मुगलों के साम्राज्यवादी मंसूबों को ध्वस्त कर दिया और नॉर्थ ईस्ट लंबे समय तक आजाद रहा। सराय घाट के युद्ध में घायल होने के कारण लगातार अस्वस्थ रहने से यह अद्भुत लाड़ला सदैव के लिए मां भारती के आंचल में 25 अप्रैल 1672 को सो गया।
लाचित इतिहास के पन्नों से गायब क्यों?
अब प्रश्न उठता है कि इस अदभुत युद्ध कौशल दिखा कर इतनी मजबूत सेना को धूल चटाने वाले महावीर को क्यों इतिहास के पन्नों से गायब कर दिया गया ? लाचित जैसी परिस्थितियों में विजय पाने वाले पूरे विश्व में गिनती के हैं। ऐसा साजिशन किया गया क्योंकि अंग्रेज इतिहासकार नहीं चाहते थे कि भारतीयों में गर्व गौरव की भावनाएं पनपें और उन्हें चुनौती मिले।
लोक गाथाओं में जीवित रहे लाचित
वामपंथी इतिहासकारों और कुछ नेताओं ने हिंदू गर्व गौरव का दबाए रखने की साजिश रची। ये देश का बड़ा दुर्भाग्य है कि अपने क्षुद्र व न्यस्त स्वार्थों के कारण देश के ऐसे अनेक विलक्षण व्यक्तित्वों को इतिहास के पन्नों से दूर रखने के कुत्सित प्रयास किए गए। पर नॉर्थ ईस्ट की जनता ने इस अमर नायक को लोक गाथाओं, लोक गीतों लोक नृत्यों के माध्यम से जिलाए रखा है।
प्रतिद्वंदी मुगल कमांडर ने की प्रशंसा
उनके प्रतिद्वंदी और उनसे हारने वाले मुगल कमांडर राम सिंह तक ने उनकी भूरी भूरी प्रशंसा की है उन्होंने कहा है “राजा की जय! सेनापतियों की जय !देश की जय! एक अकेले व्यक्ति ने सारी सेना का नेतृत्व किया। यहां तक कि मैं राम सिंह व्यक्तिगत रूप से मौके पर रहने के बावजूद भी कोई कमी या मौका नहीं ढूंढ सका”।
इतिहासकार और बॉलीवुड द्वारा उपेक्षा
इतिहासकार अधिक फोकस दिल्ली के राजाओं को देते रहे हैं । अहोम भारत की सबसे लंबी चलने वाली डायनेस्टीज में एक है फिर भी वह कितनी उपेक्षित है। अफसोस है कि बॉलीवुड ने भी ऐसे नायकों को लेकर फिल्म नहीं बनाई।
दक्षिण और नॉर्थ ईस्ट के इतिहास के असंख्य गौरवपूर्ण अध्याय हैं जिनको जनता तक पहुंचना अभी शेष है।हमारे लिए कितने अफसोस की बात है कि भारत के ग्रेटेस्ट आर्मी जनरल में से एक लचित बोरफुकन के बारे में हम बहुत कम जानते थे।
लाचित को सलाम
लाचित और अहोम सैनिकों की वीरता, साहस और अपने देश के लिए मर मिटने वाले जज्बे को सलाम।