केमिकल्स का कहर हमारे घर पर, इनडोर प्रदूषण है साइलेंट किलर
कहां होता है अधिक प्रदूषण बाहर या बंद घरों में
आज हम बात करेंगे, बेहद चैंकाने वाले इंडोर प्रदूषण के कहर के बारे में, हम सामान्यता घर के बाहर के पोलूशन पर ही अधिक ध्यान देते हैं, पर आप शायद यह जानकर चौंक जाएंगे, कि बंद घरों में सड़कों की अपेक्षा 10 से 15 गुना अधिक प्रदूषण होता है। चूंकि हम अधिकांश समय घर के अंदर ही व्यतीत करते हैं। इसलिए इसका महत्व और अधिक बढ़ जाता है।
क्यों कहते हैं प्रदूषण को साइलेंट किलर
आंतरिक प्रदूषण साइलेंट किलर होता है। इसका तुरंत असर नहीं होता। इसलिए अनेक लोगों को लगता है कि वैसे ही हो हल्ला मचाया जा रहा है, उन्हें तो कुछ हो ही नहीं रहा। लेकिन इससे स्वास्थ्य पर गहरे प्रतिकूल प्रभाव पड़ते हैं। यह रोगों की विभीषिका बढ़ा देता है। लाखों लोग हर साल इनडोर प्रदूषण से मारे जा रहे हैं।
एयर क्वालिटी इंडेक्स क्या होता है?
विश्व के सर्वाधिक टॉप 50 प्रदूषित शहरों में अधिकांश भारत के हैं। प्रदूषण मानकों के अनुसार प्रदूषण की सीमा एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) 10 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर मानी जाती है। हाल ही में लंदन में जब यह 20 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर हो गई ,तब वहां के सांसदों ने हाउस ऑफ कॉमन्स में सरकार से पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी घोषित करने की जोरदार मांग की। भारत में टॉप 10 शहरों में प्रदूषण का स्तर 350 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर से अधिक पहुंच गया है। फिर भी इस देश की सरकार, विपक्ष और मीडिया इस विषय पर मौन है क्योंकि यह विषय उनका वोट या टीआरपी नहीं बढ़ाता जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार भारत में प्रदूषण मृत्यु के सबसे बड़े कारणों में से एक है।
घरों के अंदर प्रदूषण के सबसे बड़े दो कारण क्या हैं?
ज्यादातर लोग वायु प्रदूषण की बात करते हैं और वे सिर्फ स्मॉग, फैक्ट्री और गाड़ियों से निकलने वाले धुएं के बारे में सोचते हैं ,लेकिन घर में जहां हम ज्यादातर समय व्यतीत करते हैं, आज वहां इनडोर प्रदूषण घर कर चुका है और वायु प्रदूषक हमारे घर व ऑफिस के अंदर के क्षेत्रों की हवा को दूषित कर रहे हैं। घर के अंदर इन वजहों इनडोर प्रदूषण उत्पन्न हो रहा है।
जानते हैं घरों में अधिक प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण क्या है, वह है, रसायनों का जमकर प्रयोग और आज की डिजिटल होती जा रही दुनिया में इलेक्ट्रॉनिक सामानों से घिर जाना।
जानते हैं घरों में अधिक प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण क्या है, वह है, रसायनों का जमकर प्रयोग और आज की डिजिटल होती जा रही दुनिया में इलेक्ट्रॉनिक सामानों से घिर जाना।
घर के अंदर किन सामग्रियों से फैल रहा है इनडोर प्रदूषण ?
साबुन, शैंपू, वाशिंग पाउडर, मॉस्किटो स्प्रे व रिपेलेंट, कॉकरोच स्प्रे, पेंट, पॉलिश, वार्निश, थिनर, फ्रेशनर, सेंट, क्लीनर्स, डियोडरेन्ट, नेल पालिश, सिगरेट, अगरबत्ती मोमबत्ती, गृह निर्माण सामग्री, टाइल्स, हीटर, ड्रायर, तंबाकू, लेजर प्रिंटर, फोटो कॉपियर, आदि हमारे रोजमर्रा प्रयोग की तमाम वस्तुएं हमारे घरों में विषैले तत्वों को छोड़ती रहती हैं जिससे घर के अन्दर प्रदूषण पनप जाता है।
ड्राईक्लीन कपड़े में ट्राई क्लोरो एथिलीन व पर क्लोरो इथाईलीन होते हैं जो अत्यंत जहरीले होते हैं।
एल पी जी चूल्हा,फ्रिज और एयर कंडीशनर फैला रहे हैं प्रदूषण
एल पी जी गैस चूल्हा से खाना पकाते समय कार्बन मोनो ऑक्साइड नाइट्रोजन डाई आक्साइड, पी. एम. 2.5, फार्मल् डीहाईड निकलती है जो कि हमारी सेहत पर बुरा प्रभाव डालती है।
सी हवा हमारे स्वास्थ्य के लिए नुकसानदेह होती है जो सांस संबंधी रोगों ,एलर्जी, सिरदर्द थकान व अन्य बीमारियों को जन्म देती है । इसके अलावा आज की डिजिटल दुनिया में हम चारों तरफ से इलेक्ट्रॉनिक सामान से घिरे बैठे हैं जो घरों की हवा में विषैली गैस घोल रहे हैं।
फ्रिज से निकलने वाली गैस हमारे घर के अंदर रहती है। कई बार लोग फ्रिज को अपने कमरे में रख लेते हैं। ऐसे में 24 घंटे उस गैस के संपर्क में रहते हैं। इसके अलावा माइक्रोवेव ओवन, एयर कंडीशनर, कंप्यूटर, कॉर्डलेस फोन, वॉयरलैस डिवाइसेज, वाई-फाई आदि रेडिएशन फैलाते हैं। हम सभी आज के समय में इन चीजों के बीच में जीने के इतने आदी हो गए हैं कि इन सबसे बचना कठिन है। वायु प्रदूषण से भले खुद को बचा लें, लेकिन घर के अंदर के पॉल्यूशन से खुद को बचाना एक बहुत भारी चैलेंज हो गया है। इसी इनडोर पॉल्यूशन के कारण ही आजकल व्यक्ति में चिड़चिड़ापन, शॉर्ट टेंपर होना, तनाव, नींद की कमी, डिप्रेशन जैसी समस्याएं हो रही हैं।
फ्रिज से निकलने वाली गैस हमारे घर के अंदर रहती है। कई बार लोग फ्रिज को अपने कमरे में रख लेते हैं। ऐसे में 24 घंटे उस गैस के संपर्क में रहते हैं। इसके अलावा माइक्रोवेव ओवन, एयर कंडीशनर, कंप्यूटर, कॉर्डलेस फोन, वॉयरलैस डिवाइसेज, वाई-फाई आदि रेडिएशन फैलाते हैं। हम सभी आज के समय में इन चीजों के बीच में जीने के इतने आदी हो गए हैं कि इन सबसे बचना कठिन है। वायु प्रदूषण से भले खुद को बचा लें, लेकिन घर के अंदर के पॉल्यूशन से खुद को बचाना एक बहुत भारी चैलेंज हो गया है। इसी इनडोर पॉल्यूशन के कारण ही आजकल व्यक्ति में चिड़चिड़ापन, शॉर्ट टेंपर होना, तनाव, नींद की कमी, डिप्रेशन जैसी समस्याएं हो रही हैं।
शहरों में इनडोर प्रदूषण क्यों हो रहा है?
शहरीकरण और बढ़ती आबादी के साथ हमारे घर छोटे और घने होते गए हैं। घनी बस्तियों में घर बने होने के कारण आर-पार वायु संचार नहीं हो पाता, जिससे हमें शुद्ध, खुली व ताजी हवा नहीं मिल पाती। एयर कंडीशनर लगे घरों में बंद हम खुली हवा की महक भूल से गए हैं। यह बंद-बंद सी हवा आंतरिक प्रदूषण बढ़ा रही है।
गांवों में कैसे फैल रहा है इंडोर प्रदूषण
जहां तक रही हमारे गांवों की बात, वहां आज भी 50 परसेंट से अधिक आबादी कंडे या लकड़ी पर खाना पका रही है जो स्वास्थ्य विशेषतया लंग्स के लिए बहुत हानिकारक है।
अब जानते हैं इनडोर प्रदूषण के कारण होने वाले रोगों के बारे में
इस कारण हमारे स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है और अनेक रोग जैसे श्वांस संबन्धी रोग, फेफड़े का संक्रमण ब्लड प्रेशर, इंफेक्शन, सिरदर्द, चक्कर आना, तनाव, डिप्रेशन, ग्रोथ कम हो जाना, कैंसर आदि हो जाते हैं। साथ ही रसायनों के कहर से जीवन की प्रत्याशा में भी कमी आ रही है।
कौन कौन से रसायन फैला रहे हैं घरों के अंदर प्रदूषण
इनडोर प्रदूषण के कारण अनेक हानिकारक रसायन घर में पनप जाते हैं। इनमें प्रमुख हैं कार्बन मोनो ऑक्साइड, फार्मल्डीहाइड, ट्राईक्लोरोइथीलीन, बेंजीन, टाल्वीन, जायलीन, एसीटोन, अमोनिया, ओजोन, नाइट्रोजन डाइ ऑक्साइड, सल्फर डाइ ऑक्साइड, लेड, पार्टिकुलेट मैटर, वोलेटाइल ऑर्गेनिक कंपाउंड्स आदि।
क्या है सिक बिल्डिंग सिंड्रोम ?
इस प्रकार के प्रदूषण को सिक बिल्डिंग सिंड्रोम कहा जाता है, जिसमें घर में रहने वाले लोग आंतरिक प्रदूषण से प्रभावित हो जाते हैं।बाहर के प्रदूषण को नियंत्रित कर पाना बहुत कठिन है पर आंतरिक प्रदूषण को हम आसानी से कंट्रोल कर सकते हैं, पर कैसे?, देखते रहिए, हमारा ब्लाग शीघ्र ही हम इस विषय पर अलग से आलेख लेकर आऐंगे ।
प्रदूषण संबंधी पुख्ता आंकड़ों काअभाव
वायु प्रदूषण भारतीयों के स्वास्थ्य को किस कदर प्रभावित करता है ,इसके पुख्ता आंकड़े देश में मौजूद नहीं है। अतैव यह पता अपना मुश्किल है कि देश में वायु प्रदूषण के कारण कितनी असमय मौतें हो रही हैं। स्वास्थ्य पर कितना असर पड़ रहा है। हालांकि विश्व स्वास्थ संगठन ने प्रदूषणसे होने वाले हानिकारक प्रभावों के बारे में बताता रहा है।
जब हम लोग स्वयं गंभीर नहीं हैं, तब सरकार पर दवाब कैसे बनेगा?
ऐसा लगता है इस क्षेत्र में अध्ययन और शोध सरकार की प्राथमिकता है ही नहीं। आज यदि केवल वायु प्रदूषण से होने वाली मौतों के आंकड़े आ जाएं तो हालात बदल जाएंगे। सरकार पर कदम उठाने का दबाव बढ़ जाएगा। चूंकि प्रदूषण से निपटने के लिए लोग व्यक्तिगत स्तर पर भी गंभीर नहीं है इसलिए सरकार पर भी ठोस एक्शन का दबाव नहीं बन पाता। अब समय की मांग है कि प्रदूषण से निपटने के लिए ठोस कदम उठाएं जाएं।