धन कमाना एक कला है
और उसे भोगना उससे भी बड़ी कला
धन के बिना जीवन संभव नहीं ?
* धन हमें अनेक कार्यों को करने की शक्ति देता है। चयन की ताकत देता है। अधिकांश लोग पैसे की कमी से अपनी आवश्यकताएं पूरी नहीं कर पाते। हर कार्य के लिए पैसा चाहिए। धन हमारे जीवन की आधारभूत आवश्यकता है, इसके बिना जीवन संभव नहीं है।
परखें धन की महत्ता को
* आज धन सामाजिक प्रतिष्ठा का प्रतीक बन चुका है। अधिकांश लोगों के लिए जीवन के लिए धन नहीं, धन के लिए जीवन हो गया है। आइए परखें कि जीवन में धन की महत्ता कितनी है? हमारे जीवन में धन की कीमत उतनी ही है, जितनी गाड़ी में पेट्रोल की, न उससे ज्यादा, न उससे कम। बगैर ईंधन के गाड़ी चल नहीं सकती, लेकिन हम केवल पेट्रोल भरने के लिए गाड़ी नहीं खरीदते।
धन कितना जरूरी?
* पैसे का महत्व जीवन में कितना है, इसे समझना बहुत जरूरी है । जीवन में खुशियां, स्वास्थ्य, शान्ति, संबंध आदि भी जरूरी है। जीवन का मुख्य मकसद है खुश रहना और इसके लिए थोड़े से धन की ही आवश्यकता पड़ती है।
बेतहाशा अंतहीन दौड़
अधिकांश मुख्य मकसद को छोड़कर मूर्खों की तरह धन के पीछे बेतहाशा, अंतहीन भागते रहते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि समाज में ज्यादातर लोग किसी को जज करते हैं, उसके धन या पद को देखकर, यानी चाय न देखकर महंगा कप देखा जाता है ।
धन का वास्तविक मूल्य
चाय बढ़िया हो तो उसे सस्ते कप में भी इंजॉय किया जा सकता है। अगर घटिया है तो लाख रुपए के कप में भी अच्छी नहीं लगेगी। बाहर वाले इंप्रेस होंगे, अरे वाह, देखो, लाखों रुपए के कप में चाय पी रहा है, कितना रईस है, पर चाय पीने वाला व्यक्ति अंदर से अच्छा अनुभव नहीं करेगा ।
99 के चक्कर में हम सब
* पैसे का मूल्य जीवन में कितना है, यह समझने में हम अक्सर गलती करते कर देते हैं। हमें पैसे की सही कीमत पहचानना चाहिए । हमने हजार या लाख या करोड़ कमाया, मरने के बाद तो सब मिट्टी हो ही जाना है । फिर भी हम 99 के चक्कर में जीवन भर पड़े रहते हैं ।
धन के मोह बढ़ता ही जाता है।
ज्यों ज्यों धन बढ़ता जाता है, हमारा धन के प्रति मोह भी बढ़ता जाता है। कितना आश्चर्य है कि मरते दम तक धन का आकर्षण बना रहता है ?
लाइफ स्टाइल में परिवर्तन नहीं
* प्रश्न उठता है कि हमारे जीवन में धन की महत्ता कितनी होनी चाहिए? अधिकांश लोग धन की सीमा तय नहीं कर पाते। जैसे-जैसे धन आता है, उनकी भूख बढ़ती जाती है हालांकि और अधिक धन उनकी लाइफस्टाइल में कोई परिवर्तन नहीं ला रहा होता है । जिनके पास धन बहुत अधिक है, वे भी उसके पीछे पागल हो कर भाग रहे हैं।
अमीरी केवल धन होने से नहीं आ सकती
* हमें दिन में कम से कम एक बार उन चीजों पर अवश्य विचार करना चाहिए, जिन्हें धन से नहीं खरीदा जा सकता। ये आपको दिखलाएगा कि वास्तव में आप कितने अमीर है। अमीरी केवल धन होने से नहीं आ सकती।
अधिक धन अच्छी नींद, सुख, शांति, रिश्ते, स्वास्थ्य नहीं दे सकता। उन्हें जिनके पास सिर्फ धन है, उनसे गरीब कोई भी नहीं है।
बढ़ता जा रहा उपभोक्तावाद
* धन की महत्ता दिनों दिन बढ़ती जा रही है क्योंकि हमारा रहन-सहन महंगा होता जा रहा है। इसका एक कारण उपभोक्तावाद भी है। अब बाजार में मीडिया के माध्यम से कृत्रिम मांग पैदा कर दी जाती है, जिससे व्यक्ति को लगता है कि अमुक वस्तु का क्रय हर हालत में करना अत्यावश्यक है, जबकि ऐसा होता नहीं है। समाज में एक दूसरे की नकल करने की प्रवृत्ति और प्रदर्शन करने की प्रवृत्ति भी बहुत अधिक बढ़ गई है। सोशल मीडिया भी इन्हें बहुत बढ़ा रहा है।
मेहनत से कमाए धन में बरकत
* गलत रास्ते से कमाए गए धन की कीमत अवश्य चुकानी पड़ती है। अतः हुनर व काबिलियत का इस्तेमाल कर अपनी मेहनत से धन कमाना चाहिए। कड़ी मेहनत से कमाए धन में बरकत होती है और हम उसे सोच समझकर खर्च करते हैं। बर्बाद नहीं करते ।
मुफ्त व इफरात में मिली वस्तु की कीमत नहीं
* जो चीज हमें मुफ्त में और इफरात में मिलती है, उसका महत्व नहीं समझते हैं। कोई अगर नाक दबाकर हमसे पूछे कि क्या चाहिए हमें, ऑक्सीजन या धन। तो हम सांसे ही मांगेगे। जो वस्तु हमारे पास नहीं होती, उसकी कीमत बहुत बढ़ जाती है।
धन के इंतजार में
* अधिकांश लोग हाथ पर हाथ धरे बैठे रहते हैं कि धन आए तो मैं कुछ करके दिखाऊं और धन कहता है कि तू कुछ कर तो मैं आऊं।
बचत की महत्ता
* अधिकांश यह सोचते हैं कि धन की आमद ही आपको अमीर बनाती है। केवल आपका धन आपको अमीर नहीं बनाता, बल्कि सोच समझ कर खर्च करने व बचत करने की आदत भी अमीर बनाती है ।
केवल पैसे के लिए व्यापार
* व्यापार जो सिर्फ पैसे बनाता है और कुछ नहीं, वह घटिया व्यापार है। ऐसा कार्य करें जो हमें पूर्णता दे, शांति दे और उसका सामाजिक सरोकार भी हो ।
धन के गुलाम न बनें
* हमें पैसे के गुलाम बनने से बचना चाहिए । अगर सोच पैसे शुरू हो और पैसे से ही समाप्त हो, तब जीवन का आनंद नहीं उठा पाएंगे।
धन की प्रासंगिकता
आवश्यकता व शौक पूरे किये जाएं और कुछ सामाजिक कार्यों में भी व्यय हो, तब धन की प्रासंगिकता सही मायनों में होगी।